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१०२, वर्ष २३ कि०३.
अनेकान्त
चिलातिपुत्र प्रादि की कथाएं सस्कृत गद्य में है। कही- है"। इसमे १४० प्राकृत गाथाए है। इसमे ग्रन्थ का नाम कहीं श्लोक भी है। (क) १८९१-९५ का स. १३२३ । धम्मक्खाणय-कोस दिया है। पाटण की हस्त प्रति जिसमें संस्कृत गद्य, प्राकृत-संस्कृत श्लोक-गाथामो के मेल वाले सस्कृत व्याख्या भी है, की तिथी वि. सं. ११६६ है। इस कथाकोश मे देवपाल की [देवपूजा के सम्बन्ध में], ८. कथा मणि-कोश [भाल्यानमणि-कोश -यह बाहुबलि की [मान के संबंध मे], अशोकदत्त की [माया देवेन्द्रगणि उर्फ नेमिचन्द्र की एक प्राकृत गाथाबद्ध रचना के संबंध में), मदनावली [वंदन पूजा के संबंध मे], की है जिसने सुखबोघा टीका, जो उत्तराध्ययन की प्राकृत" पादि-आदि कथाए है। कोई-कोई कथा प्राकृत गाथा से कथानो के लिए सुख्यात है, वि. स. ११२६ मे समाप्त की ही प्रारम्भ होती है । १८८७-६१ की स. १२६७ को प्रति थी। देवेन्द्र अपनी बोधगम्य शैली के लिए सुप्रसिद्ध है भी इसी प्रकार प्रारम्भ होती है और उसमे की कुछ और इसलिए ४१ अध्यायों के इस बृहद् ग्रन्थ की हस्तप्रति कथाए भी उसी के समान है। उपदेशमाला की गाथा को दस पक्षा की TERTAI . २४० याने 'वसही मादि' इसकी कुछ गाथो का माधार है। संस्कृत टीका जिनचन्द्र के शिष्य अमरदेव ने वि. स. (६) १८६१-६५ का स. १३२२ । मदनरेखा, सनत्कुमार ११६० मे, याने ग्रंथ प्रणयन के ठीक ६० वर्ष बाद" प्रादि की कथाए सस्कृत में दी गई है और बीच-बीच मे लिखी है। प्राकृत एवम् अपभ्रंश की गाथा भी उनमे है। (१०) ६.कथा महोदधि-हरि या हरिषेण का कर्पूरप्रकर" १९८४-८६ का स.४७८ । इसके पहले तीन पत्रों मे हरि- मा मुक्तावली १७९ इलोको का एक उपदेशो काव्य है । पेण का कथाकोश है, उसके बाद अपभ्रश को कथानो का इममे जैन धार्मिक और नैतिक सिद्धान्तो का विवेचन ग्रन्थ है जिसमे लगभग ५३ कथाए है। सुगन्धदशमी, किया गया है जो ग्रन्थकार के अनुसार ८७ है। यह षोडशकरण, रलावली [सस्कृत मे], निर्दोष सप्तमी वास्तव में कभी-कभी ही होता है कि एक व्यक्ति धार्मिक पादि-आदि वतों की कथाए है। इनके अतिरिक्त और भी बातावरण में जन्म ले, आवश्यक शिक्षा सस्कार पाये और कथाकोश है जिनके लेखक वर्षमान, चन्द्रकीति, सिंहमूरि, जैनाचार पर, प्रान्तर एवम् बाह्य सव अनुरोध को दवा चयतिलक, सकलकीर्ति, पद्मनन्दी, रामचन्द्र"पादि-मादि कर, जीवन यापन करे मोर अन्त में मुक्त ही हो जाए। है। परन्तु उनकी हस्तप्रतियां मुझे प्राप्त नहीं हो सकी इस उपदेशी काव्य का प्रत्येक पद बडी सुन्दरता से प्रस्तुब थीं। ७. कथानक कोश :--इसका रचयिता विनयचन्द्र
१५. पाटण की हस्तप्रतियों की सूची, भाग १ [गायकवाड़ १४. दिल्ली के नए दिगम्बर मन्दिर मे एक सस्कृत का
प्रो. ग्रंथमाल। सं.७६] पृ० ४२।। पुण्यात्रव-कथाकोश है। ऐसा ही एक ग्रन्थ कन्नड मे
१६. इनमे से कुछ का सम्पादन याकोबी ने अपने अन्य
लेपज़िग से १८८६ मे किया था और उनका अनुवाद नागराज का ई. १४३१ का लिखा हुआ है। सब
'हिन्द्र टेल्स' शीर्षक से मायर का किया हुमा लदन से मिला कर ५२ कथा है जिनमें पूजा प्रादि धर्म कार्यों
१९०९ में प्रकाशित हुमा है; देखो 'प्राकृत कथासग्रह' के दृष्टान्त रूप भरत, करकट, यम, चारुदत्त, सुकु- जिनविजयजी सम्पादित, अहमदाबाद से प्रकाशित मार, सीता प्रादि की जीवनियां दी गई है और उन्हें
भी है। बारह अधिकारों में विभाजित किया गया है। यह १७. देखो चाटियर सम्पादित उत्तराध्ययन में उसका चम्पू शैली में लिखा है और लेखक कहता है कि यह लिखा इट्रोडक्शन, पृ० ५६ आदि; पैटरसन प्रतिवेदसंस्कृत मंच पर प्राधारित है [कविचारते भाग १, नाए ४, पृ० ५६ [लेखक अनुक्रमणिका]; प्रतिवेः ३ पृ. ४०६-१२] 1 इस कन्नड ग्रन्थ का अनुवाद पृ० ७. प्रादि । मराठी मोवियों मे जिनसेन ने शक स. १७४३ याने १८. ग्रन्थ का प्रारम्भ ही 'कपूर प्रकर वाक्य से होता है. ई. १८२१ मे किया था।
मत यह नाम है।
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