Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 221
________________ २०२, वर्ष २३ कि० ५-६ करण किया है, परन्तु धनंजय ने कविराज का अनुकरण तेरदाल शिलालेख में उल्लिखित श्रुतकीति से करता है। किया है, यह तथ्य किसी विशेष प्रमाण पर प्राधारित इन कारणों से पाठक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि श्रुतहोना चाहिए। यहाँ भी भण्डारकर प्राग्रह करते हुए दिखाई नही देते, क्योकि वे कहते है, "यदि अनुकरण की कीर्ति का ग्रन्थ शक स. १०४५ में लिखा नहीं गया जब कल्पना सही है।" यदि धनंजय ने किसी का अनुकरण कि शक स. १०६७ पोर १०८५ के बीच वह एक प्रसिद्ध काव्य माना जाता था। यह भी उल्लेखनीय है कि पम्प किया है तो अब यह कहा जा सकता है कि उनके समक्ष उसे विद्वत्ता का प्राश्चर्यकारी नमूना मानता है जिससे दण्डी का द्विसन्धान रहा होगा जिनका उल्लेख एक नीचे श्रुतकीर्ति ने सुप्रसिद्धि प्रजित की। इन कथनों से यह अनुके पद्य में किया गया है । भण्डारकर का यह निष्कर्ष सही मान लगाया जा सकता है कि पम्प केवल एक जैन काव्य है कि कविराज मुज (९६६ ई ) के उत्तरवर्ती और धनजय से परिचित थे और वह था सभी द्वारा प्रशसित राघव११४७ ई. के पूर्ववर्ती रहे होगे। नये तथ्यों के प्राचार पाण्डवीय । पाठक ने यह भी देखा कि वर्धमान (वि. सं. पर यह कहा जा सकता है कि धनंजय भोज के पूर्ववर्ती ११६७ अथवा शक सं. १०६२) किस प्रकार अपने गुणहोगे और कविराज का समय बारहवी शताब्दी के अन्तिम रत्नमहोदधि मे धनंजय के राघवपाण्डवीय का अनेक बार चरण मे नियोजित किया जा सकता है । उद्धरण देते है और किस प्रकार चालुक्य नृपति जगदेवमल्ल पाठक द्वारा स्वमत की पुनरुक्ति द्वितीय (शक सं. १०६-७२ (१) का समकालीन दुर्गासिंह प्रो. मेक्समूलर के उत्तर मे के. बी. पाठक ने १९७० यह कहता है कि धनजय राघवपाण्डवीय की रचना से मे "द जैन पोइम राघवपाण्डवीय ए रिप्लाईट प्रो. मेक्स. बृहस्पति हो गए। यह कथन श्रुतकीति के ग्रन्थ के सन्दर्भ मूलर" शीर्षक एक और शोधपत्र प्रकाशित किया ("द में होना चाहिए जिनका समय शक स. १०४५ सिद्ध है । जर्नल प्राव द बाम्बे ब्राच प्राव द रायल एशियाटिक ऐसी कल्पना निरर्थक सिद्ध होगी कि प्रल्प समय में शक सोसाइटी जिल्द २१, पृष्ठ १, २, ३, बम्बई १९०४) स. १०४५ आर १० उन्होने अपनी पूर्व विचारधारा को प्रागे बढ़ाते हुए कहा द्वयर्थक काव्य दिगम्बर जन सम्प्रदाय के दो कविय कि तेरदाल शिलालेख के माघनन्दि सैद्धान्तिक श्रवणबेल- होंगे। यदि ऐसा होता तो श्रुतकीति का ग्रन्थ शक स. गोल के शिलालेख नम्बर ४० मे उल्लिखित किए गए है। १०६० मे विद्वत्ता की प्राश्चर्यकारी कृति के रूप में माना उन्होने यह बताया कि पम्प के पद्य श्रवणबेलगोल शिला- जाना समाप्त हो जाता। अतएव यह स्पष्ट है कि धन जय लेख में भी पाये जाते है । श्रुतकीति विद्य और देवकीति श्रुतकीर्ति का द्वितीय नाम था और उनके ग्रन्थ का रचना(मृत्यु शक स. १०८५) साथी-समकालीन होना चाहिए। काल शक स. १०४५ से १०६२ के बीच निर्धारित किया उन्होने अधोलिखित गणना सम्बन्धी तथ्य हमारे समक्ष जा सकता है। प्रस्तुत किए है पाठक के मत की दुर्बलताएँ १. तेरदाल शिलालेख शक स. १०४५ मे श्रुतकीति विद्य का उल्लेख करता है परन्तु राघवपाण्डवीय के ___ यह स्वीकार कर लिया गया है, जैसा हमने अभी रचयिता के सन्दर्भ मे वह मौन है। देखा, कि तेरदाल, कोल्हापुर और श्रवणबेलगोल शिला लेखों में उल्लिखित श्रुतकीति वही हैं जिन्हे पम्प ने उद्२. अभिनव पम्प शक स. १०२७ मे श्रुतकीति विद्य पत किया है। पम्प ने और तेरदाल शिलालेख (शक स. के काव्य का उल्लेख करता है। १०४५-११२३ ई.) ने उन्हें व्रती कहा है। परन्तु कोल्हा३. श्रवणबेलगोल शिलालेख (नं. ४०, शक स. पुर शिलालेख में उन्हें ११३५ ई. के प्राचार्य के रूप में १०८५) अभिनव पम्प के पद्यों को श्रुतकीति विद्य के उल्लिखित किया गया है। पम्प ने राघव-पाण्डवीय को पद्य रूप मे उल्लेख करता है और श्रुतकीर्ति की पहचान उनसे सम्बन्धित माना है। विद्वानों के बीच उसे माश्चर्य.

Loading...

Page Navigation
1 ... 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286