Book Title: Anekant 1970 Book 23 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 177
________________ १६२ वर्ष २३, कि० ४ अनेकान्त परन्तु वह एक लकड़ी के तख्ते के सहारे तैरती हुई तीन क्षमा मांगी। मैंने उसे समझाया कि कुलपति के कथनानुदिन मे किनारे पहुँच गई । वह शीघ्र ही अपने प्रेमी से सार तुम्हारा प्रेमी जीवित है वह यही कही है, उसे लेकर मिलेगी और उसका जीवन सफल होगा। (१३). उसका मै अाश्रम में लौट आई। तुम्हे खोजने के लिए कुछ प्रेमी निश्चित रूप से मारा नही गया है। दूसरे दिन तपस्वी बालक इधर-उधर भेजे गये । अन्त में मै स्वयं शाम को मैंने यह सब कुछ उसे बता दिया है । संसार की तुम्हें ढूंढने निकली। तुम यहाँ मिले हो, अब कृपा करके दशा का वर्णन कर समझाया है कि इसमें प्रासक्त होने पाश्रम मे चलो और उस बाला के प्राण बचानो। (२२) वालो की क्या दशा होती है। (१४). तब मैने कोई [श्लोक पृ० ३४५.३-३४७.१७] । दीक्षा प्रादिक ग्रहण न करने के लिए उसे समझाया। पचम सन्धि-वह राजकुमार तपस्विनी का अनु. क्योंकि उसका पति अभी जीवित है, जैसा कि कुलपति गमन करते हुए विनय पूर्वक पाश्रम में पहुँचा। विलासके कथन से सिद्ध है । वह उसे शीघ्र ही मिलेगा इस वती यह जानकर कि उसका प्रेमी प्राश्रम द्वार पर तरह मैने उसे घंयं दिया। (१५). कुछ दिन उसने तापस उपस्थित है, कुछ शरमा कर, बिस्तर से उठ कर कुटी के बा जैसे वस्त्र धारण किये। एक बार वह कुछ फूल अन्दर चली गई। (१) तापसी ने योग्य सत्कार करके और समिधा लेने के लिये गई, परन्तु वापस पाने के बाद विलासववती को संकेत दिया, तदनुसार विलासवती ने उसकी दशा कुछ परिवर्तित और प्रतिदिन अधिक दु:खी सनत्कुमार के चरण प्रक्षालित किए। वन में प्राप्त अन्न होते हुए दिखाई दी (१६). कुलपति के पाने की प्रतीक्षा और फलो द्वारा भोजन तैयार किया गया। तदनन्तर है। उसके कार्य एव लक्षण स्पष्ट प्रकट करते है कि वह विधिपूर्वक विलासवती का परिणय सनत्कुमार से सम्पन्न कामदेव से ग्रस्त है। (१७) [श्लोक पृ० ३४१.१३. हा । वे दोनों सुन्दर बन नामक उद्यान में चले गये । ३४५.२] दूसरे दिन मैंने उसकी कामासक्त दशा का (२-३) वह उद्यान अनेक फल वृक्षो एव पुष्पित लतामो अनुभव किया। वह मजपा लेकर पुष्प स ग्रहाथं एक स्थल से सुमज्जित था। (४) उद्यान के दृश्य प्रति मनोहारी पर गई । मै भी चुपचाप उसके पीछे-पीछे गई । वह केले थे। (५) वहाँ उन दोनों ने प्रथमरात्रि सानन्द समाप्त के बन ममूह के पीछे वैठकर अपने भाग्य को धिक्कारने की । (६) [श्लोक पृ० ३४७.१८-३४६.१२] । और रान लगा। (१८) हाथ जाडकर ग्रासू बहाती तदनुसार कुछ दिन उन्होंने आश्रम के भव्य वाताहुई वह वन देवता को पुकारने लगी। यही तो वह स्थान वरण मे व्यतीत किए । एक बार जब वे पुष्प और समिधा है जहा मुझे मेरा प्रेमी मिला था, उसने अपना पता संचय के लिए गए थे, विलासवती को पुष्पचयन मे व्यस्त बताया था, परन्तु लज्जा ने मेरा मुख बन्द कर दिया था देखकर, उसके प्रेम की परीक्षा लेने के लिए एवं कुछ और मैंने उसके प्रश्न का कोई उत्तर न दिया था। (१६) मनोविनोद करने के लिए मनत्कुमार ने पूर्वोक्त चमत्कारी वह जंगल मे दृष्टि से परे हो गया। मुझे आश्चर्य है कि कम्बल प्रोढ़ लिया शोर अदृश्य हो गया। उसे वहा न मेरा केवल भ्रम था या वह कोई विद्याधर था और कोई पाकर विलासवती डर गई और मूच्छित होकर पृथ्वी पर उस प्रेमी का भेष बनाकर मुझे ठगने आया था। इस गिर पडी। सनत्कुमार ने प्रकट होकर धैर्य बंधाया और वियोग को मैं प्रब और अधिक सहन नही कर सकती।" कम्बल विषयक समस्त रहस्य उस पर प्रकट कर दिया। तब एक वृक्ष से फांसी लगाकर मरने को तैयार हुई चोर (७-६) वह कम्बल उसे सुरक्षित रखने के लिए सौंप वन देवता से प्रार्थना करने लगी कि मेरा सब वृत्तान्त दिया। [श्लोक पृ० ३४६.१३-३५०.१५] । उन दोनो मेरे प्रेमी को सुना देना। (२०) मैं ठीक समय पर उसे ने स्वदेश लौटने की सलाह की । समुद्रतट पर खडित बचाने पहुंच गई। उसे धर्माचरण विरुद्ध कार्य न करने के जलयान का संकेतक एक झण्डा लगाया गया। यह सकेत लिए समझाया। (२१) माता के समान मुझमे विश्वास पट पोताध्यक्ष सानुदेव के जलयान ने देखा जो महाकटाह न रखने के लिए डाटा तब उसने अनुचित कार्य के लिए स्थान से मलयदेश की तरफ जाने वाला था। सानुदेव

Loading...

Page Navigation
1 ... 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286