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मलपुर कान शिलालेख
को।"
इन्द्रवजा की बजाय उपजाति होना चाहिए।
कर विद्वान् देवचन्द्र ने यह प्रशस्ति बनाई थी। वास्तव्य श्लोक ५०, ५२ को अपठनीय लिखा है इनका छद ।। गोत्री कायस्थ जाति के शरद् के पुत्र सोमा से उत्पन्न नाम क्रमशः स्वागता, शालिनी है।
शेखर ने यह प्रशस्ति वेदी पर लिखी। काश्यपगोत्री पायक श्लोक ३८, ३६ उपेन्द्रबचा लिखा है किन्तु उपजाति सूत्रधार (शिल्पी) के पुत्र वामदेव ने यह प्रशस्ति उत्कीर्ण होना चाहिए।
मापने अपने लेख मे 'कच्छपघात वशी' राजापो का यह सब वर्णन प्रत्यन प्रांजल सुन्दर सरस मनोहर उल्लेख किया है मो पाठको की जानकारी के लिए मै प्रसाद गुण युक्त काव्य में किया गया है। काव्य शैली यह बताना चाहता हूँ कि-कच्छपघात को बोल-चाल बडी ही लाजवाब है इसी से प्राकृष्ट होकर मैंने इस पर मे "कछवाहा" कहते है।
परिश्रम किया है पाठक भी इसका समुचित रसास्वादन लेख मे-"नरवर्मदेव के पास शत्रु भी प्रसन्न चित्त ले सके इम लिए इसे हिन्दी अर्थ के साथ भागे प्रकट रहते थे।" ऐसा जो श्लोक नं० के साथ लिखा है सो किया जा रहा है। अब तक जितने शिलालेख प्रकट हुए किमी भी श्लोक में ऐमा कथन नही है यह कथन गलत है उन मब में काव्य दृष्टि से यह सर्वोपरि ज्ञात होता है। प्रतीत होता है। इसके मिवा कस्तूरचन्द जी सा० ने इस शिलालेख का
श्री मान् प० वर्य दीपचन्द जी पाण्डया ने इस नाम-"भीमपुर का शिलालेख" दिया है किन्तु यह
साहित्यिक कार्य में मुझे सब प्रकार का पूर्ण सहयोग दिया
है इसके लिए मै उनका अतीव प्राभारी हूँ। शिलालेख नलपुर का है, क्योकि इममे नलपुर का ही वर्णन
अगर इस महान कार्य में किसी भी प्रकार की कोई है। भीमपुर का कही कोई नामोल्लेख तक नही है। भीमपुर मे पाने से या आज ग्वालियर म्युजियम मे होने
गलती विशेषज्ञ विद्वानो को दृष्टिगत हो तो मुझे सूचित
करने का अनुग्रह करे मै उनका प्राभारी होऊंगा। से शिलालेख वहा का नहीं हो जाता । अगर शिलालेख में
|| श्री ॥ स्थान का समूचन न हो तो फिर भी चाहे जो नाम दिया जा सकता है किन्तु जब शिलालेख में स्पष्ट नलपुर का
नलपुर का जैन शिलालेख उल्लेख है तो उसका अपलाप कर भीमपुर का नाम देना
(हिन्दी अनुवाद युक्त)
॥ स्वस्ति ।। उचित नही, उल्टी इमसे भ्राति होती है। हमने इसीलिए
(वसंत तिलका छंद) इस अभिलेख का नाम "नलपुर का शिलालेख ' दिया है ।
भामडलीयमिषतः सवितारमेषा इस शिलालेख में निम्न प्रकार वर्णन है :-देवशास्त्र समेवितु दिवसवासवनदिनीव । गुरू का मगलाचरण, यज्वपाल राजवश इसमे परमाद्रि- यस्यांसयोलसति कुंतल कात लेखा राज-चाहड नुवर्मा राजा हुए उनके बाद प्रासन नरेन्द्र स श्रेयसे भवतु व. प्रभुरादिदेव. ॥१॥ हुए। इनके राज्य में नलपुर नगर था जहाँ जमवाल वश अर्थ .-वे प्रादिनाथ भगवान् तुम्हारे कल्याण के उस वश में जसिह उमके पूर्वज तथा पुत्र पौत्रादि का लिा हो जिनके दोनो कंधो पर लहराती हई केशगशि उल्लेख, जैसिंह ने नलपुर में सगमरमर के नवीन भामडल के बहाने ऐसी सुशोभित हो रही है मानो सूर्य जिनालय का निर्माण करापा, पौरपाट जाति के नागदेव की सेवा के लिए यमुना नदी ही हो । ने महेन्द्र बन कर १३१६ सं० मे इसकी प्रतिष्ठा कराई, (विशेष :-दिवसवासवनदिनी-दिन का इन्द्र-सर्य प्रतिष्ठा गुरू अमरकीति देव और वसन्तदेव थे, जैसवाल उमकी पुत्री-यमुना दी। यहा भामडल को सूर्य की काति के अन्य अनेक श्रेष्ठीगण, परवार और पोरवाड़ उपमा दी है क्योकि दोनो पीले है और केशराशि को जाति के साहू (शाह) एव माथुरवंशी श्रावक मादि सब यमुना नदी की क्योकि दोनो काली है।)
- जिनालय निर्माण में सहयोगी थे, केश गण के देव- उद्भासयंति यनुपर्युरगेन्द्रचूलार स्वामी के शिष्य कविवर वीरचन्द्र से ज्ञान प्राप्त रत्नप्रदीपकलिकाः किल सप्त संख्याः।