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भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य
[?], तब भी एक गृहपति द्वारा वहन सताए गए जबकि कोसाम्बी के नीच गोती भिक्ष, मोमदत मादि जब प्रायो. धन उसका पुत्र ही ले गया था। मेयज ने असीम करुणा पगमन किये हए थे, समुद्र मे फेंक दिए गएम. के कारण कोंच पक्षी को कि जिसने दोष किया था, नही ४६४] । शुद्ध सम्यक्त्व याने सम्यकदर्शन के कारण यपि बताया। और जब उनकी प्रॉग्खों मे शलाकाएं घुसा दी वह सम्यकचारित्र के साथ नहीं था, तो भी हरिकुलप्रभ, गई तो भी वह मंदार पर्वत के समान अटल, मचल ही श्रेणिक और अन्य जनों ने तीर्थकर गोत्र का बंधन काही खडे रहे। [भ० १३२, म. ४२५-२६] । उस दुष्ट मेण्ठा लिया। [म.६७] । सोदास को स्वाद याने जिह्वा का ने जिसे चोरी के अपराध में फांसी का दण्ड दिया गया दास होने के कारण और गजा सोमालिया को स्पोंद्रिय था, मरण समय में भगवान को वदन, नमन किया और m m s. फल स्वरूप वह मर कर कमलदल नामक यक्ष उत्पन्न
उपयुक्त सर्वेक्षण प्रांशिक ही है और इसमें पइस्लयों हमा । भि० ७८] । कोसांबी के ललियघडा के ३२ की सभी कहानियाँ समाविष्ट नहीं हुई हैं। कुछ कपालक सदस्यो ने नदी की बाढ़ का वीरता से सामना किया और
तो ननामे ही हैं। [म० ४२४, ५१० मादि] और कुछ स्वयम् प्रायोपगमन कर परम पद प्राप्त किया। [सथा०
नाम वाले तो हैं परन्तु व्योरे रहित हैं। [म ४३२.। ७६-८०, म० ४८०?] | संत वयर ऋषि के ५०० शिष्य
मैं ने गाथानों का उल्लेख करने में बड़ी सावधानी बरती
ही थे। एक शिला पर तप करते हुए धूप मे वैर ऋषि खड़े
है. क्योकि कथानकों से भली प्रकार परिचित हए बिना रहे । कोमल शरीरी जैसे कि वे थे, उनका शरीर उस
हुन गाथाम्रो की व्याख्या करना कठिन होता है। कहींसूर्य के ताप में घी की तरह पिघल गया। जिस स्थान
कहीं तो नाम का पता लगाना भी कठिन ही रहा है।
को पर देवो ने उनकी पूजा उपासना की, उस रहावट्ट गार दिट्टीवाय मे एक कथानक मंक्षिप्त किया गया है। [भ. कहा जाता है और जिस पवत पर उनका अन्यथना ५१२ २०], परन्तु प्रावश्यक नामों का वहाँ ठीक-ठीक ने की वह कुजगवट्ट नाम से प्रसिद्ध हुआ। [म० ४६८-निरी
निर्देश नही किया गया है। भिन्न-भिन्न परिषहों को कि ७३] । एक ही झठ अनेक सत्य शब्दो को दूषित-कलुषित
जिनका विवरण उत्तराध्ययन, अध्याय २ [म० ४८४] में कर देती है। वसु एक बार ही प्रसत्य बोल कर नरक
किया गया है, महने वाले प्राचीन त्यागी वोगें के उदाभोगी हुआ था। [भ० १०१[ । चौथा चक्रवर्ती, सनत्कु
हरणों में कितने ही नाम गिनाए गए हैं, परन्तु शास्त्र में मार सात हजार वर्ष तक १६ प्रकार के रोगों से दुखी
उनका जीवन व्योग बहत कम दिया गया है। [म. रहा था और उसने यह कष्ट शांति और समाधि पूर्वक
४८५-५०३ प्रादि]। सहा था। [म. ४१०-१२] । चार महीने के उपवास के
अर्धमागधी आगमों के वर्णनात्मक विभाग का यह पारणे के दिन जब कि वह अपने व्रत मे सुदृढ़ था और।
विहगावलोकन अवश्य ही कुछ निश्चित मोटी बातों का पर्वत से नीचे उतर रहा या, श्रमण सुकोशल का उसकी
हमे निर्देश कर देता है। एक तो यह कि जीवनिया तीन माता ने ही गला घोट दिया जो कि तब चित्तकूड के
ही तीर्थङ्करों याने नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर से मुग्गिलगिरि मे सिंहनीरूप जन्म पाई हुई थी। मुनि ने
ही मुख्यतया सम्बन्धित हैं। उनमें भी महावीर से सम्बयह सब परिषह समाधि पूर्वक सहा और परम पद को
धित सर्वाधिक और पार्श्वनाथ से सम्बन्धित न्यूनप्राप्त किया। [भ० १६१, म० ४६६-६७, सथा० ६३. तम है। नेमिनाथ सम्बन्धित सभी जीवनियों में कृष्ण६४] । मूर्ख गोपालक लड़के ने भक्ति व श्रद्धा के साथ
वासुदेव ही मुख्य पात्र हैं। ये जीवनियां हरिवंश से नमस्कार मत्र का स्मरण किया और उसके फल स्वरूप
सम्बन्धित है। महावीर युग के क्थानकों में शात्कालिक चंपा मे धनी गृहपति सुदंसण रूप में जन्मा । [भ०८१]। राजवंशों और राजामों के विषय की जानकारी बहत कुछ ५२ बहुत सम्भव है कि एक ही कथानक के ये दो दी गई है। यद्यपि ये कथानक भाव में प्रौपदेधिक ही है, संस्करण है।
पर यह भी बिलकुल स्पष्ट है कि उनसे सम्बन्धित कुछ