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१०, वर्ष २३ कि०२
अनेकान्त मनाया है, इस प्रसंग पर ग्वालियर से प्रकाशित मध्य दिखाई देती हैं। प्रदेश संदेश का 'पुरातत्व अंक' प्रकाशित हुआ है जिसमे (४) तिराहो-जैन चौमुखी की सुन्दर मूर्ति दृष्टिमध्य प्रदेश के अनेक स्थानों के जैन पुरातत्व का भी गोचर होती है। यह वास्तुकला का अनूठा नमूना है। संक्षिप्त उल्लेख हुआ है। पुरातत्व अक में करीब पैतीस (५) इन्दार-महा-जैन तीर्थंकरों की प्राचीन (३५) स्थानों का विवरण छपा है जिनमें से 'सोनागिर' मूर्तियाँ प्रतिष्ठित है इन मूर्तियो का शिल्प. दर्शक को दिगम्बर जैनतीर्थ का विवरण श्री हरिमोहन लाल मत्र-मुग्ध कर देता है। श्रीवास्तव ने दिया है। वह तो जंन पत्रों में ज्यों का (६) चन्देरी-अनेक जैन मूर्तियां यहाँ तथा बढी त्यों प्रकाशित किया जा सकता है। अन्य स्थानो के चन्देरी मे ध्वस्तावस्था में है। विवरण में प्रसंगवश जैन मन्दिर व मूर्तियो का उल्लेख (७) खजुराहो-घट ई मन्दिर-यह खजुराहो के हना है जिनका आवश्यक अंश इस लेख में प्रकाशित कर दक्षिण में बना हगा है। यद्यपि यह मन्दिर भग्नावस्था रहा है जिससे जैन समाज को मध्य प्रदेश में फैले हुए मे है, तो भी शिल्पकारों की कला प्रवीणता की गौरवमयी जैन पुरातत्व की कुछ जानकारी मिल सके और विद्वद्गण कहानी को धीरे-धीरे कहता हा लगता है। इसके प्रवेश विशेष खोज के लिए प्रेरणा प्राप्त करे।
द्वार पर पाठ भुजाओं वाली जैन देवी की मूर्ति गरुड पर प्रस्तुत पुरातत्व अंक मे कुछ जैन मन्दिर और मूर्तियो विराजमान होकर द्वार की शोभा को द्विगुणित कर रही के चित्र भी छपे है। गुप्तकाल से लेकर मध्यकाल तक के है। मदिर के तोरण के ऊपरी भाग मे जैन प्रवर्तक जैन मन्दिर भोर मूर्तियों का जो विवरण इस अंक में छपा तीर्थकर महावीर की माता के सोलह स्वप्नो का सजीव है उसमें कुछ स्थान तो प्रसिद्ध है पर कुछ ऐसे भी है प्रकन हो रहा है। जिनके सम्बन्ध में जैन समाज को प्रायः जानकारी नही पार्श्वनाथ मन्दिर-खजुराहो का विशाल तथा हैं। उज्जैन में जो जैन संग्रहालय श्री सत्यधर सेठी प्रादि सन्दरतम मन्दिर है। इसके भीतरी भाग मे बना सुन्दर के प्रयत्न से जैन मन्दिर से संलग्न रूप में स्थापित है सिंहासन है। इसके अगले भाग मे वृषभ की प्रतिमा का उसकी भी जैन मूर्तियों आदि का विवरण इस 'पुरातत्व अकन किया गया है। इसमे पार्श्वनाथ की प्राधुनिक प्रक' में प्रकाशित किया जाता तो अच्छा होता । अब इस प्रतिमा की स्थापना १८६० में की गयी थी। इस मन्दिर प्रक की जैन सम्बन्धी जानकारी नीचे दी जा रही है- के गर्भ-गृह के बाहरी दीवारों पर शिल्प कला के द्वारा
(१) ग्वालियर-उरवाई द्वार के दोनो ओर ढाल बालक बालिका शृंगारित सुन्दरी आदि के अनोखे रूपांपर अनेक छोटी-बडी जैन मूर्तियां बनी हुई है। इसी कन हैं। प्रादिनाथ मन्दिर, पार्श्वनाथ मन्दिर के पास ही प्रकार किले की चट्टानों पर कई मूर्तियाँ जहाँ तहाँ उत्कीर्ण उत्तर में छोटी सी प्राकृति मे विनिर्मित है। हैं । पत्थर की ये जैन तीर्थंकरों की मूर्तिया उत्तर भारत (6) बड़ोह पठारी-जैन मन्दिर-एक अहाते में लगकी विशालतम मूर्तियो में से हैं । लक्ष्मण द्वार से उतरे भग २५ जैन मूर्तियां विराजमान हैं, मध्य में एक ऊंची वेदी हुए ढाल पर बायी ओर बनी सबसे बड़ी मूर्ति तो १७ है। कुछ मूर्तियां शिखरो से सुशोभित है, कुछ गुम्बदों से मीटर ऊची है।
प्रलंकृत है और कुछ के ऊपर समतल छत है। (२) सुहानिया-अनेक जैन मूर्तियों के अतिरिक्त वडोह के भव्य जैन मन्दिर और वहाँ की एक प्राचीन प्रासपास के क्षेत्र में प्राप्त अनेक अवशेष (चैतनाथ) यहीं जैन प्रतिमा का ब्लाक 'मध्यप्रदेश संदेश' के ता० २० के मन्दिर में एकत्रित हैं।
जून के अंक में अभी छपा है। (३) पढावली-ग्राम के पश्चिम मे जैन मन्दिर के (B) ग्यारसपुर-वचमठ-यह छोटा-सा अनुपम अवशेष हैं। जिनकी मूर्तियों का शिल्प उच्चकोटि का मन्दिर है जिसमें तीन छोटे-छोटे मन्दिर एक ही बरामदे है । ग्राम के पास-पास के क्षेत्र में भी जैन मूर्तियां पड़ी में हैं। आज इनमें जैन मूर्तियां है जिसकी स्थापना बाद