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पावा कहाँ ? गंगा के दक्षिण में या उत्तर में ?
मुनि श्री महेन्द्रकुमार जो 'प्रथम'
इतिहास और परम्परा जब एक-दूसरे को साथ लेकर निकटवर्ती पावा उस समय मागधो के अधीन थी। मामध! चलते है, बहुत सारे तथ्य प्रामाणिक हो जाते है और और गणराजापो के बीच ज्वलत शत्रुता थी। शत्रु प्रदेश उन्हे सुगमता से मान्यता मिल जाती है। किन्तु परम्परा में उनका जाना कतई मम्भव नही हो सकता। गगा के जब इतिहास का साथ छोड़ देती है, वह श्रद्धा युग में उत्तरी अचल मे गणराज्य थे। वे अपनी राज्य मीमा में चली जाती है और उसकी सर्व मान्यता सदिग्ध हो जातो भगवान् महावीर के निर्वाणोत्सव में सम्मिलित हुए है, यही है। इतिहास परम्परा को साथ लेकर पुष्ट होता है, पर यथार्थना के अधिक निकट है। उसके साथ न रहने पर भी उसके अस्तित्व को कोई भगवान् महावीर ने अन्तिम वर्षावास से पूर्व का वर्षाचुनौती नहीं दे सकता। किन्तु कई बार इमका उल्टा भी वास गजगृह मे किया। प्रतिम समय तक उनका शरीर होता है । परम्परा इतिहास को इतना धुधना कर देनी है नीगंग था और उन पर वाक्य का भी कोई विशेष अमर कि यथार्थता बिलकुल मोझल हो जाती है। ऐसा ही नही था। गजगिर मे वर्तमान पावा की दूरी केवल सातउत्तर प्रदेश के 'पण्डुर' गाव के साथ हुआ है। परम्परा पाट मीन है। प्रश्न होता है, पाठ पहीनो की अवधि मे ने उसके इतिहास को अनगिन परतो के नीचे दबा दिया क्या उन्होने इतना ही विहार किया होगा? मम्भव है, है । आवश्यकता है, उस इतिहास को पुनः उभारा जाये। उन्होने लम्बा बिहार किया है और गगा के दक्षिण अचन
'पपहर' वर्तमान में देवरिया जिले में है। आज से में वे उत्तरी प्रचल में पाये है। ढाई हजार वर्ष पूर्व यह 'अपापापुरी', 'पावा' आदि नामो दीघनिकाय अट्ठकथा (सुमगल विलासिनी) मे बताया से भी ख्यिात था । इतना ही नहीं, राजा हस्तिपाल की गया है, 'पावा नगर तो तीणि गाबुतानि कुमिनाग नगर' राजधानी होने का भी गौरव इसे प्राप्त था। भगवान् पावा से कसिनारा की दूरी तीन गव्यूत (तीन कोस) है। महावीर ने अपना अन्तिम वर्षावास भी यही किया इससे भी स्पष्ट ध्वनित होता है कि पावा एक ही नही था और यही से कार्तिक अमावश्या को ये निर्वाण प्राप्त दो है । एका गगा के उत्तर में तथा दूसरा दक्षिण में । हुए थे । परम्परा ने इस गाव को इतना पीछे धकेल दिया उत्तरी पावा क्रमश. परम्परा की निगाह से ग्रोभल होती है कि विद्वानो के अतिरिक्त सामान्य जनता इस तथ्य को गई और दक्षिण पावा को मान्यता मिलती गई । इतिहास स्वीकार करने को भी तैयार नही है।
ने पुनः करवट ली है। अणुव्रत परामर्शक मुनिश्री नगगज भगवान् महावीर का निर्वाण-स्थल परम्परा के अन- जी डी लिट०, महापडित राहुल साकृत्यायन आदि विद्वानों सार पटना जिले में गगा के दक्षिण प्रदेश मे राजगिर की ने अपनी गोध के आधार पर उपेक्षित उत्तरी पावा की समीपवर्ती पावा को बतलाया जा रहा है। वहा के भव्य पोर पुन' जन सामान्य का ध्यान प्राकर्षित किया है। मन्दिरो ने उसे एक जैन तीर्थ बना दिया है, पर इतिहास चार वर्ष के बाद भगवान महावीर की २५ सौवी इसे स्वीकार नही कर सकता। इसके कुछ मुख्य कारण निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उत्तर प्रदेश का उपेक्षित हैं । इतिहास के अनुसार यह सर्वसम्मत मान्यता है कि ग्राम 'पपहर' पुन' अपनी ऐतिहासिक महत्ता को प्राप्त भगवान् महावीर के निर्वाण के समय नौ मल्लकी तथा नौ कर सकेगा; ऐमी सम्भावनाए अब प्राकार लेने लिच्छवी; अठारह गणराजा उपस्थित थे। राजगिर की लगी है। *