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भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य
व्यक्तियो को नमस्कार किया गया है जिनकी कि स्मृति- पाण्डव-कथा के विकास की प्रारम्भिक स्थिति का है कि रक्षा उत्तर साहित्य में की गयी है। तीथंकरों की उपलब्ध जिसका परिवर्षित और साम्प्रदायिक रूप प्राधुनिक महाजीवनियों में से अधिकांश, चाहे वे प्राकृत, संस्कृत, कन्नड भारत में हमें प्राप्त है। भद्रबाहु का तथाकथित वासुदेव और तमिल मादि किसी भी भाषा में क्यों न लिखी गई चरित्र हमे उपलब्ध नही हुमा है। परन्तु वासुदेव के देशहो, मे परम्परानुसार विवरण तो दिया ही गया है, परन्तु विदेश पर्यटन का वर्णन करने वाली और गुणाढ्य की उनकी शैली संस्कृत पार्ष काव्यों के अनुसरण पर अलं- बृहत्कथा के जन प्रतिरूप का सुन्दरतम चित्र प्रस्तुत करने कारिक है। लक्ष्मणगणि" और गुणभद्र रचित सुपार्श्व वाली सघदासगणि की वासुदेव हिण्डी वीर कथा, लोकएवं महावीर के प्राकृत चरित्र, हरिचन्द्र और वीरनदि कथा, जन्म-जन्मान्तर के उन्नायक पाख्यानो एव साम्प्ररचित धर्मनाथ एवं चन्द्रप्रभ के संस्कृत चरित्र, पप, रत्न दायिक व प्रौपदेशिकः प्राख्यानिकानो का एक स्मरणीय एवं होन्न रचित आदिनाथ, अजितनाथ और शातिनाथ सग्रह पथ हमे प्राप्त है । कई पाख्यान जैसे कि चारुदत्त, के कन्नड चरित्र, इनके अच्छे उदाहरण है । जेन परम्परा अगडदत्त पीप्पलाद, सगरकुमार, नारद, पर्वत वसु, राम और कृष्ण को मुनिसुव्रत और नेमिनाथ के सम- सनत्कुमार आदि आदि जिनकी उत्तरकालीन साहित्य मे कालीन मानती है और राम एव कृष्ण की कथा के कितनी
लोकप्रियता मान कर बारबार पुनरावृत्ति की गई है, उस ही प्रकार के जैन सस्करण प्राप्त है। विमल का पउम
वासुदेवहिण्डी मे प्रायः उसी रूप में पहले ही से स्थान चरिय और रविषेण का पद्म चरित्र, जैन दृष्टिकोण और
पाए हुए हैं । कडारपिग की जैसी कहानियां जो कि लपटी पृष्ठभूमि के अनुसार ली गई छूटों का विचार करते हुए
पात्रों में सुप्रसिद्ध है, भी इसी श्रोत में हमे प्राप्त है। भी, रामकथा को मौलिक एवं महत्वपूर्ण वैशिष्ठ्य प्रदान
चाहे कहानी के पात्रों के नाम बदल गये हों, परन्तु लक्ष्य करते है हालाकि ऐसा करते हुए भी, वे यह प्रच्छन्न नही तो वहां का वही
तो वहाँ का वही है। जिनसेन का संस्कृत हरिवश पुराण
जिनमेरा मस्कत गि रख सके है कि उन्हे वाल्मीकि रामायण का परिचय नहीं
और अपभ्रंश का धवल कवि का वासुदेवहिण्डी से बहुतांशमे है। विद्याधरों और उनकी कारस्तानियो के प्रवेश के
मिलता है। यह द्रष्टव्य है कि जिनसेन के ग्रन्थ मे कारण इन ग्रथों को कितने ही स्थानों में परी-कथाओं कितने ही ब्यौरे ऐसे दिए गए है कि जो ६३ शलाकाका सा मनोहर रूप प्राप्त हो गया है । कृष्ण-वासुदेव जैन पुरुषों के चरित्र ग्रन्थ मे शोभा पा सकते हैं। इस नमूने साहित्य में भी पूर्ण प्रमुखता प्राप्त करते है। अर्धमागधी के सैकड़ों ही, गद्य एवं पद्य ग्रन्थ अनेक भारतीय भाषामों शास्त्रों में उनके और उनके गण याने वृष्णिवंश के बाबत के उपलब्ध है । कुछ में तो जीवन्धर, यशोधर करकण्ड, अनेक सूचनाए प्राप्त है। वे अपने गुण के सर्वप्रमुख वीर नागकुमार और श्रीपाल जैसे धर्म-कर्म-वीरव्यक्तियों के ही या नायक है । परन्तु उनके अवतारी पुरुष होने के चिन्ह, जीवन वर्णन है तो दूसरों मे उन धर्मवीर श्रावक एव जो कि महाभारत मे असाधारण और प्रचुर परिमाण मे श्राविकारो की उपदेशप्रद कथाएं है कि जिनने कुछ व्रतों व्यक्त है, जैन उल्लेखो मे एक दम ही नही है । प्राचीन
और धर्म-क्रियाओं के पालन में ही अपना सारा जीवन जैन ग्रन्थों में पाण्डवों को इतना महत्व प्राप्त नही हुआ
उत्सर्ग कर दिया। प्राचीन साहित्य के सुप्रख्यात वैरागी था जितना कि महाभारत में उन्हे प्राप्त है। और कृष्ण
वीरों की सक्षिप्त जीवनियां भी है। इहभव और परभव ने अवतारी पुरुष का नहीं, परन्तु एक साहसी एवं उदात्त
मे अच्छे और बुरे कर्मों के फलो को दृष्टान्त द्वारा हृदयक्षत्रीय का ही रूप उनमें पाया है। कदाचित यह चित्रण
गम कराने वाली परिशोध कथाए भी है। इन कथामों में ३७ लेखक सम्यक्त्व के फल और बारह व्रतों के अतिचारो भावना और सिद्धान्तोपदेश ये दो ही प्रतिपाद्य विषय है।
की दार्टान्तिक अनेक उपकथाएं देता है और उनने कुछ कथानक तो प्राचीन साहित्य से लिए गए हैं तो कथा की प्रमुख धारा या प्रवाह को प्रायः पाच्छा- दूसरे लोकजीवनियो से। कुछ काल्पनिक भी हो सकते है। दित कर दिया है।
परन्तु इन सबको जिस ढांचे में सजाया गया है वह अन