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२४ वर्ष २३ कि. २
अनेकान्त
भी इसी तिथि से हुआ है। ऐसा पुरातन ग्रंथों में उल्लेख के समय अभिजित नक्षत्र में भगवान महावीर के शासन है। साथ ही यह भी लिखा है कि युग की समाप्ति प्राषाढ की उत्पत्ति विपुलगिरि पर हुई । उनकी प्रथम दिव्यवाणी की पौर्णमाणी को होती है। और पौर्णमासी की रात्रि खिरी । और उसके द्वारा उनका धर्मचक्र प्रवर्तित हुआ। के अनन्तर ही प्रातःकाल श्रावण कृष्णा प्रतिप्रदा को अभि- यह उनके सर्वोदय तीर्थ का पहला दिन था। इसी दिन जित नक्षत्र, बालवकरण और रुद्र मुहूर्त मे युग का विलविलाट करते हुए पशु कुल की रक्षा हुई, उन्हे प्रारम्भ हुग्रा करता है। इन सब उल्लेखो से इस तिथि याज्ञिक हिसा से त्राण मिला। उनके भय और दुख मे की महत्ता का स्पष्ट भान हो जाता है।
कमी आई। महावीर के अहिंसा डिमडिम नाद से जगत इमी थावण कृष्णा प्रतिपदा को प्रातःकाल सूर्योदय
में क्रान्ति पाई और जनमाधारण में अहिंसा की लहर
दौड़ गई। १. एएउ मुसमसुसमादयोग्रद्धा विसेसाजुगादिणासह उनकी दिव्य देशनाओं से संसारके सभी जीवोके प्रति पवत्तति जुगतण सह समप्पंति । पादलिप्ताचार्य प्रेमभाव प्रकट हुग्रा-कल्याण का मार्ग मिला। याज्ञिक
ज्यो. क० टी० हिसा का प्रतिरोध हा, पशुप्रो को अभयदान मिला । २. प्राषाढ पौणिमास्या तु युगनिष्पत्तिश्च धावणे । संबस्त और प्रपीडित जनता को अभूतपूर्व अवलम्बन प्रारम्भ; प्रतिपच्चन्द्र योगाभिजिदि कृष्णके ।।
मिला, जिससे वे मुखपूर्वक जीवन यापन कर सके । रूढि
लोकविभाग ७,३६ वाद और धर्मान्धता के प्राग्रह में शिथिलता पाई। ३. प्रासाढ पुण्णमीएजुगणिप्पत्ती दु सावणे किण्हे ।
अहिंसा का नाद सब जगह प्रतिध्वनित होने लगा। उनके अभिजिम्हिचंदजोगे पाडिवदिवसम्हि पारभो॥
मर्वोदय तीर्थ मे जन प्रवाह उमडा हुअा चला पाया, उनकी
त्रिलोकसार ४२१ शरण मे सभी जीव सुख पाते, लोग ऐसे पहिसा के महामावण बहुलपडिवए बालवकरणे अभीइनक्खत्ते। रथी भगवान की जय बोले बिना नही रहते । उन्होने सम्वत्थ पढमसमये जुगस्स प्राइवियाणाहि ॥ जनता की भलाई के लिए ही स्वय सुखपूर्वक जियो और
ज्योतिषकरण्डक ५५ दूसरों को जीने दो की दुहाई दी।
वीर शासन की विशेषताएँ
भगवान महावीर का यह शासन सर्वोदय तीर्थ के नाम जब प्रात्मा अहिसा की पूर्ण प्रतिष्ठा को प्राप्त कर लेता से प्रसिद्ध है, क्योंकि उसमे संसार के समस्त जीवों के है-परमब्रह्म परमात्मा बन जाता है, तब उसमे कोई अभ्युदय -कल्याण - की बातो का समावेश है। इसमे वैर विरोध नहीं रहता। जैसा कि पतजलि ऋषि के निम्न जाति या धर्म सम्बन्धित संकीर्ण मनोवृत्तियों का सर्वथा मूत्र से प्रकट है-'अहिसा प्रतिष्ठायातत्सन्निधौ वैरत्यागः' अभाव है। इस शासन मे आकर सभी जीव अपना (योग सूत्र)। इसीलिए उनको सभा में बैठने वाले पशुओं आत्महित करने में समर्थ हो सकते है । उनको सभा मे मे जाति-विरोध भी समाप्त हो गया था । सभी जीव देव, मनुष्य, असुर, पशु, पक्षी आदि सभी जीवो ने बैठ स्वाभाविक प्रणय या मैत्रीभाव को प्राप्त हो जाते है। कर धर्मामृत का पान किया था। इसमे किसी को कोई इसी करण उनका तीर्थ सर्वोदय के नाम से प्रसिद्ध है। विरोध नही है कि जाति-विरोधी जीव भी वहां (समवस- सर्वोदय का अर्थ सब का उदय है, जिसे पाकर सभी रण सभा मे) बैठ कर समभाव से रहते थे। उसका जीव अपना अभ्युदय, कल्याण या विकास सिद्ध कर सके, कारण भगवान महावीर को पूर्ण अहिंसा की प्रतिष्ठा थी। वही सर्वोदय है। तीर्थ का अर्थ तिरने-पार होने- का उन्होंने अहिंसा को पूर्ण प्रतिष्ठा को प्राप्त कर लिया था। उपाय या साधन है । जिसे पाकर जीव अपना हित