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भृगाल से सिद्ध
प्रघुम्न कुमार का बड़ा प्रताप था। सभी यदुवशी होकर सन्निकट के गिरनार पर्वत पर चले गए और उनका लोहा मानते थे। राजे-महाराजे उनकी सेवा करते दिगम्बर मुनि हो गए। उनकी मगेतर राजुल भी पायिका ये। भोग-सुख इच्छानुसार भोगते हुए प्रद्युम्न कुमार अपने हो गई। पुण्य प्रताप से तीनो लोक के सारभूत मुख को पाते रहे। प्रम म्न कुमार भी बहुत दिनों तक त्याग के इस
पापियो का क्या ! कोई दु.ख ऐसा नही कि जो प्रभाव से अपने को अलग न रख सके और एक दिन वे उन्हें भोगने न पड़ते । अपना पेट भरने के लिए रात-दिन भी घर-बार छोड़ कर दिगम्बर मुनि की दीक्षा लेने चिन्तित रहना, वस्त्र भोजन के बिना पृथ्वी पर पड़े रहना, नेमिनाथ के समवशरण मे पहुंच गए। दूसर की नौकरी-चाकरी करना, रूप-लावण्य रहित होना, इसी समय नेमिनाथ ने भविष्यवाणी की कि यादवों दीन-हीन, बिना बान्धवों वाला होना, भाई-बन्धुप्रो द्वारा पर मद्यपान के प्रति प्राप्सक्ति के कारण बड़ी-बड़ी विपदा निन्दिन और जगह-जगह तिरस्कृत होना, यह सभी तो पाएगी। कृष्ण की मृत्यु बाण लगने पर होगी भोर पाप के फल है।
द्वारिकापुरी द्वीपायन मुनि के क्रोध के कारण भस्मीभूत जगमव कृष्ण द्वारा मारा जा चुका था। कृष्ण को हो जायगी। इस समाचार से सारी द्वारिका पुरी मे सुदर्शनचक्र प्राप्त हो चुका था। महाभारत समाप्त हो बेचैनी फैल गई। लोग द्वारिकापुरी छोड़-छाड कर यत्रचुवा था । कौरवो का क्षय हो चुका था। अरिष्टनेमि तत्र जाने लगे। कृष्ण द्वारा राज्य भर मे मद्यपान निषेध पर इस महायुद्ध का बड़ा प्रभाव पहा था और दिन-दिन की माला प्रचारित की गई। उनके वेगग्यभाव बढ़ते जा रहे थे। उनके साथ प्रधम्न परन्तु हुमा वही जो होना था। यादव कुमारों के कुमार भी विराग की ओर पाकृष्ट हो रहे थे तभी एक मद्यपान के कारण दीपायन मुनि ने द्वारिकापूरी को अभुतपूर्व घटना हुई।
भस्मीभूत कर दिया। कृष्ण जगल मे मारे-मारे फिरे और अरिष्टनेमि के असमान्य बल के कारण कृष्ण कुछ एक बाण द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुए। चिन्तित रहा करने थे। एक बार राज्य सभा में ही इधर गिरनार पर्वत पर अरिष्टनेमि तप और त्याग 'कोन अधिक बलवान है' इस पर बात बहन अधिक बढ़ द्वारा तीर्थकर नेमिनाथ हुए। बाद में उन्हें और प्रनम्न गई। अरिष्टनेमि ने अपने पावो को पृथ्वी पर जमा दिया कुमार एव कई अन्य त्यागियों को निर्वाण की प्राप्ति हुई। और उनके पावो को हिला न सकने के कारण कृष्ण आदि आज भी गिरनार पर्वत लाखो भक्तों द्वारा पूजित मभी मामन्तो को सभा मे लज्जित होना पड़ा । कुछ समय है। उमकी तीन उंची चोटियो पर प्रम म्न कुमार आदि उपगन्त एक दिन कुछ कारणवश उत्तजित हो अरिष्टनेमि यादव कुमारी ने मोक्ष प्राप्त कर उसे पवित्र किया। कृष्ण की प्रायुधशाला में चले गए और शेपनाग पर सवार तीर्थकर नेमिनाथ एव इन तीनो महापुरुषों की चरणहोकर मुदर्शनचक्र को ऐसा नचाया एवं नाको की फक से पादुकाए हजागे वपों से इस पवित्र पर्वत पर विराजमान ही ऐसा शखनाद किया कि नगर मे शोर मच गया। है और बन्दना करने वालो का ताता युगो से चला पा कृष्ण आदि ने उन्हें किसी-न-किसी तरह शान्त किया। रहा है।
यह सब था पर अरिष्टनेमि तो अद्भुत सम्यग्दृष्टि करोडो की सम्पदा भक्तो ने इस पहाड को सुशोभित थे। उन्हें अहकार क्षोभ आदि छू तक नही गए थे। करने में लगा दी, और लगा रहे है । संगमरमर के जैसे समय देखकर उनकी इच्छा के विरुद्ध कृष्ण ने उनके शानदार और दर्शनीय मन्दिर इस पर्वत पर है शायद ही विवाह का प्रायोजन ऐसे कपटपूर्ण ढग से किया कि भारत में कही हो। अरिष्टनेमि की विगग भावना बिल्कुल जागृत हो जाए धन्य है प्रनम्न कुमार | कहा कई भव पहले उनका और वे राज्य छोड़कर सन्यासी हो जाय । उनकी योजना जीव शृगाल पशु था और कहां अन्त में सिद्ध परमात्मा सफल हई और परिष्टनेमि भी बीच बारात से ही विरागी होकर रहा। *