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वीरशासन जयन्ती
काल म० १८२७ है यह ग्रन्थ भी उक्त भडार में अब स्थित है । कवि की बनाई हुई अन्य अनेक रचनाएं प्रजमेर के शास्त्र भंडार में सुरक्षित है।
धन्यकुमार चरित्र इस ग्रन्थ का पद्यानुवाद भी खुशालचन्द्र काला ने किया है । कवि खडेलवाल जाति मे उत्पन्न हुआ था । यह ब्रह्मनेमिदत्त के संस्कृत धन्यकुमार चरित्र का पद्यानुवाद है । नया मन्दिर धर्मपुरा में प्रवस्थित है।
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६ महीपाल चरित्र - इस ग्रथ के रचयिता रत्ननन्दि के शिष्य चरित्रभूषण है । इस ग्रंथ के टीकाकार नथमल विलाला है । ग्रंथ की रचना सं० १९९८ में हुई है । रचना साधारण है ।
१० यशोधर चरित्र - यह भट्टारक देवेन्द्रकीति को रचना है, इसके पद्यानुवादकर्ता भी यही सुशान काला हैं, जिनका ऊपर उल्लेख किया है। ग्रंथ का रचनाकाल स० १७८१ है ।
वीरशासन जयन्ती
परमानन्द शास्त्री
भारतीय इतिहास में श्रावण कृष्णा प्रतिपदा एक अनि प्राचीन ऐतिहासिक तिथि है। इसी तिथि से भारत वर्ष मे नये वर्ष का प्रारम्भ हुआ करता था । नये वर्ष की खनिया मनाई जाती थीं और वर्ष भर के लिये शुभकाम नाए की जाती थीं प्राचार्य यतिवृषभ की तिलोग पण्णत्ती और घवला जैसी प्राचीन टीकाओ में - 'वासस्स पढममासे सावणणामम्मि बहुल पडिवाए तथा वासस्स पदम मासे पढमे पक्खम्मि सावणे बहुले । पाडिवद पुव्व दिवसे' जैसे वाक्यों द्वारा इस तिथि को वर्ष के प्रथम माम का प्रथम पक्ष और पहला दिन सूचित किया है। देश में सावनी - प्राषाढ़ी के विभाग रूप जो फसली साल प्रचलित है वह भी उसी प्राचीन प्रथा का सूचक जान पडता है जिसकी संख्या प्राजकल गलत रूप मे प्रचलित हो रही है । कहीं-कही विक्रम संवत का प्रारम्भ भी श्रावण कृष्णा एकम से माना जाता है जैसा कि विश्वेश्वर
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११ नेमिपुराण नेमिदत्त, पञ्चानुवादकर्ता व्र० वखतावरमल रतनलाल, रचना समय १६०६, प्रस्तुत ग्रंथ का मूल संस्कृत पद्यों में है। वह अभी तक प्रकाशित नही हुआ है किन्तु इसका हिन्दी अनुवाद सूरत से प्रकाशित हो चुका है। पद्यानुवाद अभी अप्रकाशित है, प्रति नयामन्दिर धर्मपुरा की है । कविता साधारण है ।
१२ श्रीपाल चरित्र - के कर्ता पंडित प्रतिसुख हैं । ग्रंथ का रचनाकाल सं० १६१८ है । कविता साधारण है । ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है ।
१३ सीताचरित - इसके रचयिता कवि रायचन्द्र हैं, ग्रन्थ का रचनाकाल सं० १७१३ है । कविता कहीं-कहीं चुभतो सी है, उसमे प्रवाह है, परन्तु वह सामान्य दर्ज की है ।
इसी तरह धन्य अनेक ग्रंथ प्रत्यभहारो मे पड़े है। कोई महानुभाव इन ग्रन्थों का प्रकाशन कर पुण्य का न करें।
नाथ रेउ के 'राजा भोज' नामक ग्रन्थ से निम्न वाक्य से प्रकट है - 'राजपूताना के उदयपुर राज्य मे विक्रम संवत का प्रारम्भ श्रावण कृष्ण एकम से माना जाता है । इसी प्रकार मारवाड के बेठ साहूकार भी वर्ष का प्रारम्भ इसी दिन से मानते है।'
इससे यह स्पष्ट परिलक्षित होता है कि उदयपुर राज्य और मारवाड में पहले से वर्ष का प्रारम्भ श्रावण कृष्णा प्रतिपदा से ही होता था। विक्रम संवत् को अपनाते हुए यहा के निवासियों ने अपनी वर्षारम्भ की तिथि को भी छोड दिया, और अनुरूप विक्रम संवत को भी परिवर्तित कर दिया ।
युग का प्रारम्भ और सुमसुमादि के विभाग रूप कालचक्र का - उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालों का प्रारम्भ
१. राजा भोज पृ० ५४