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पुराणों के ग्राधार पर प्रद्युम्न कुमार की ऐतिहासिक रोचक कथा
शृगाल से सिद्ध
श्री सुबोध कुमार जैन हजारों हजार वर्ष पहले की कहानी है। दो सियार जहाँ अपना जीवन काल बिताने पर वे मृत्यु उपरान्त फिर थे । किसान अपने खेतो की चौकीदारी ऐसा करते थे, सौधर्म स्वर्ग में देव हुए। जिससे सियारो का पेट नहीं भरता था। एक रात भूख देवायु व्यतीत करके वे कौशल देश में राजा पद्मनाभ की पीड़ा से वे जहाँ तहाँ फिर रहे थे। जब कुछ भी के पुत्र उत्पन्न हुए। पहले का नाम मधु और दूसरे का खाने को नहीं मिला तो खेत के किनारे पड़ी एक रस्सी कैटभ था। बाद में मधु कौशल का राजा हुमा और को ही दोनों चबाने लगे। रस्सी गन्दी और सड़ी होने से कैटभ युवराज । एक बार एक दूसरे देश पर आक्रमण जहरीली हो गई थी।
__ हेतु जाते हुए राजा मधु एक मित्र देश के राजा की रानी अखिर दोनो ही तड़प-तडप कर मर गए।
चन्द्रप्रभा को देख कर आसक्त हो गया। उसने छल-बल सबेरा होने पर उस खेत के किसान ने उनकी चमडी से चन्द्रप्रभा का हरण किया और चन्द्रप्रभा भी उसके उघाड कर उसे काम में लाने के लिए सूखने को डाल मोह पाश में फस गई। उधर रानी चद्रप्रभा का पति, दिया।
पत्नि के वियोग में पागल हो गया। यह देखकर चद्रप्रभा दोनों ही सियार मरने के बाद मगध देश में एक को अत्यन्त दुख हुमा । उसने अपने को धिक्कारा । कारण के घर जन्मे और पढ़ लिख कर बड़े हुए। ये दोनो अत्यन्त पाकर राजा मधु को भी अपने किए पर इतना पश्चाताप घमडी और पाखडी थे। अपने मिथ्या ज्ञान के घमड मे हया कि वह वैरागी होकर मुनि हो गया। युवराज कैटभ एक बार वे एक जैन मुनि से शास्त्रार्थ करने चल पडे। भी मूनि हो गये । अन्ततोगत्वा रानी चन्द्रप्रभा भी रास्ते मे उन जैन मुनि के एक शिष्य ने ही उन्हे शास्त्रार्थ यायिका हो गई। में परास्त कर दिया। क्रोधित होकर वे उस शिष्य की राजा मधु का जीवन तपस्या के प्रभाव से सोलहवें हत्या करने रात मे उनके स्थान पर पहुँचे पर देवतायो स्वर्ग में देव हुआ और तदुपरान्त देव जाति के दिव्य से यह न देखा गया। दोनों भाइयो के तलवार उनके सुख को भोग कर आयु के अन्त में वहाँ से नयकर पूर्व हाथों में ही रह गए और वे वही पत्थर की तरह कीलित पुण्य के प्रभाव से द्वारिका नगनी में यादवों के श्रेष्ठ हो गए।
कुल मे कृष्ण-नारायण की रानी रुक्मिणी के गर्भ में कीलित होने के उपरान्त दोनो भाइयों को वास्त- पाया। विकता का ज्ञान हमा और अपने व्यवहार पर उन्हें बडा उघर रानी चन्द्रप्रभा का प्रभागा पागल पति मरकर पश्चाताप हुआ। उन्होंने थावक का व्रत ले लिया और नीच योनियो मे परिभ्रमण करता हा कर्म योग से समय पाकर सद्ध्यानपूर्वक शरीर त्याग कर मोधर्म स्वर्ग मिथ्यादृष्टि मनुष्य हुपा। फिर वहाँ से प्रायु पूरी कर में इन्द्र और उपेन्द्र हए ।
धूमकेतु नामक असुरों का नायक देव हा । जिस रात को देव लोक की आयु पूरी कर दोनों ही अयोध्या के रुक्मणि के गर्भ से राजा मधु का जीव जन्मा उसी रात समुद्रदत्त श्रेष्ठि के यहां पुत्र उत्पन्न हुए। उनका नाम- वह आकाश मार्ग मे जा रहा था। अपने पूर्व भव के वैरी करण मणिभद्र और पूर्णभद्र हमा। दोनों धर्मकृत्य आदि मधु के जन्म का उसे ज्ञान हुपा । वह उसो समय रुक्मणि में लगे रहते थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा अनुपम हुई थी। के बगल से उस नन्हें बच्चे को उठा कर एक पर्वत शिखा