________________
भारत में वर्णनात्मक कथा-साहित्य
जीवनी की वे प्राधारभूत बातें सभी दी गई हैं कि जिन मूलाचार, निज्जुत्ति जैसे कि मावश्यक, पिण्ड मादि, कम पर उत्तर ग्रन्थों की रचना हुई है। ऐसी ही बाते याव- से कम कुछ अंशो मे, किसी एक समान थोत्र के ही भाभारी श्यक-भाष्य प्रादि में भी हैं । वट्टकेर के मूलाचार मे [२, है कि जो कभी दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों में ही प्रधि८६-७] वर्णन है कि महेन्द्रदत्त ने कनकलता, नागलता, कृत माने जाते रहे होगे।" भाषाई और क्रियामूलक विद्युल्लता और कुन्दलता जैसी स्त्रियों को एवं सागरक, विभेद, पाठों के लिपिबद्ध हो जाने के पश्चात् की पारस्पवल्लभक, कुलदत्त और वर्धमानक जैसे पुरुषों का एक ही रिक आदान-प्रदान की सम्भावना को एक दम अमान्य कर दिन मे मिथिला में वध कर दिया था। इस गाथा पर देता है । वास्तव मे ये विभेद स्पष्ट बताते है कि वही बसुनन्दि टीकाकार ने व्योरेवार कथानक नही दिया है. गाथा कैसे, विषय को प्रभावित किए बिना ही, मौखिक अपितु इतना ही कह दिया है, 'कथानिका चात्र व्याख्यया सक्रमण के समय क्षुद्र परिवर्तन को तो प्राप्त हो ही गई। अागमोपदेशात्'। फिर क्रोध, मान, माया और लोभ द्वारा विषय की तादृश स्थूल रूपरेखा का मरक्षण प्राचीन जैन कुछ मुनियो द्वारा प्राहार प्राप्त किया गया था, उनके परम्परा को प्रामाणिकत
परम्परा की प्रामाणिकता और उसके इस काल तक ज्यों दृष्टान्त के लिए हस्थिकप्प" वेणयड, वाणारसी और की त्यो हस्तान्तरित किए जाने की निष्ठा को हो प्रमारासियाण नगरों से सम्बन्धित कुछ कथायो का उल्लेख णित करता है।
णित करती है। विभेदों के पीछे, जो कि बाद में जटिल है। टीकाकार बमुनन्दि ने यहाँ भी कथाएँ नहीं देकर, हो गए, पक्षपात-शून्य अध्ययन-मनन जैन परम्परा की इतना ही कह दिया है, 'प्रत्र कथा उत्प्रेक्ष्य वाच्या इति । ठोस और समान एक आगे की गाथा [६. ३६] मे यशोधर को प्रादर्श दानपति के लक्ष्य मूलतः दाना म कहा गया है । शिवार्य की "भगवती माराधना" में यद्यपि से ही वैराग्य-वीरों की जयन्तियां या उत्सव मनाते है। मुनि के मरणान्त समय के वैराग्यानुशासन को ही मुख्यता प्राचीन दिगम्बर श्रावकाचारों मे समन्तभद्र का दी गई है फिर भी, कितनी ही जीवनियों का उल्लेख उसमें रत्नकरण्डश्रावकाचार है और उसमें अंजन चोर", मनन्तकिया गया है जिन पर जैसा कि हम पागे देखेगे, हरिषेण मति, उद्यायन, रेवती, जिनेन्द्रभक्त, वारिषेण, विष्णु और प्रभाचन्द्र प्रादि के कथाकोगों में संग्रहीत अनेक कथानक वज्र का उल्लेख सम्यक्त्व
वज्र का उल्लेख सम्यक्त्व के पाठ अंगों का पालन करने विकास पा गए है । मूल ग्रन्थ मे कितने ही प्रमुख व्यक्ति- वालों के दृष्टान्त रूप से किया गया है [१, १९-२०] । यों का उल्लेख है कि जो अपने धर्माचरण, पापाचरण, फिर मातग, घना
फिर मातग, घनदेव, वारिषेण, नीली और जय अणुव्रतों वैराग्य-वीरता, या इह भव और परभव के परिणामों के के यथार्थ पालने वाले सुप्रसिद्ध कहे गये हैं, और धनश्री, प्रति बताई सहनशीलता के लिए स्मरणीय है"। कितने सत्यघोष, तापम, पारक्षक और इमथुनवनीत पांच महाही नाम तो पइन्नयो में मिलने वाले ही है और इनमें से पापों के दृष्टान्त रूप से उल्लेग्व किए गए हैं [३, १८कुछ का उल्लेख प्रायः वैसी की वैसी ही गाथानो मे यहाँ १] । अन्त में श्रीषेण, वृपभसेन और कोण्डेश का नाम भी है।
प्रादर्शदाताओं के लिए दिया गया है (४, २८)। वसुनन्दि श्रामण्य जीवन सम्बन्धी प्रायः तादृश बातों के कारण
ने अपने उवासयभयण" मे सम्यक्त्व के पाठ अंगों के ही, थोड़े शाब्दिक एवम् भाषाई हेरफेर बाली समान गाथा पौर उसी प्रकार की व्याख्या एवम् वाचना के कारण यह
- ३५ यशस्तिलक चम्पू [शक म० ८८१] के ६ठे प्राश्वास परिणाम अनिवार्यतः निकलता है कि "भगवती पाराधना,
में भी ये कथानक दिये हुए हैं। नयसेन का धर्मामृत
किन्नड ई०१११२] भी समक्त्व, व्रत प्रादि संबंधी ३३ जित कल्पभाष्य [अहमदाबाद संस्क. सं. १९६४] में
कथाएं देता है। एक दृष्टान्त हाथीकप्प के स्वमग का दिया गया है
३६ मैंने उम संस्करण का उपयोग किया है जिसमें प्राकृत परन्तु अधिक विवरण नहीं दिया गया है [गाथा मूष और हिन्दी अनुवाद है। उसका मुखपृष्ठ गायब १३६५ आदि।
है। संभवत: वह सूरजभान वकील, देवबन्द, द्वारा १४ ये बातें अधिक व्योरा सहित प्रागे लिखी गई हैं। प्रकाशित किया गया था।