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तिजारा : एक ऐतिहासिक परिचय
परमानन्द जन शास्त्री
वर्तमान तिजारा अलवर जिले के उत्तर-पूर्व में दिल्ली सन् १४१५ (वि० सं० १४७२) में बहलोल लोदी पौर अलवर के मध्य अवस्थित है। यह एक प्राचीन जब दिल्ली का शासक बना, तब उसने मेवात के इलाके मगर रहा है। इसे कब मौर किसने बसाया, इसका क्या में से सात परगने तातारखां को प्रदान किये थे। उसने प्रामाणिक इतिवृत्त है ? यह अभी तक निश्चित नही हो तिजारा को अपना केन्द्र बनाया था। तातारखां का सका। भारक्योलाजिकल सर्वे माग २० में लिखा है कि मकबरा नगर से लगभग १ मील दूर पूर्व दिशा में मौजा महाभारत काल में यादववंश के तेजपाल ने इस नगर को कालिया में अवस्थित है। बसाया। यहां यादवों का बहुत काल तक शासन भी
बहलोल लोदी की मृत्यु के बाद सिकन्दर लोदी सन् रहा है।
१४८५ (वि० सं० १५३२) में दिल्ली के तख्त पर बैठा । मध्ययुगीन भारतीय इतिहास का अध्ययन करने से उसने तिजारे का इलाका प्रपने छोटे भाई मलाउद्दीन यह स्पष्ट बोध होता है कि हिन्दू राजाभों का सभी धर्मों (पालमखाँ) को दिया । सन् १४९८ में अलाउद्दीन ने को पाश्रय मिलता था। उन राजाओं ने कभी बलपूर्वक अपने नाम पर 'अलावलपुर' नाम का गांव बसाया जिसके, धर्मपरिवर्तन कराने का उपक्रम नहीं किया। किन्तु दक्षिण भग्नावशेष पाज भी तिजारा के उत्तर-पूर्व में उपलब्ध भारत में शवों और वैष्णवों के समय जैनों मौर बौद्धों होते हैं। को अनन्त कष्ट सहने पड़े और अपने धर्म की जो महान् तिजारा के शासक हसनखां मेवाती ने सन् १५२७ में क्षति उठानी पड़ी, तथा धर्मपरिवर्तन करना पड़ा, धर्म- मुगल सम्राट् बाबर के विरुद्ध कनवा के मैदान में राणा परिवर्तन न करने पर अपने जीवन और सम्पत्ति दोनों से सांगा की सहायता की थी। हाथ धोने पड़े, इन दुखान्त घटनामों का विचार माते ही सन् १५३१ में हुमायूं ने अपने छोटे भाई हिन्दाल को रोंगटे खड़े हो जाते है। बौद्धधर्म को तो भारत से मेवात का शासक नियुक्त किया । उसने तिजारा मे रहना निर्वासित होना ही पड़ा, किन्तु जैनधर्म अपनी महान प्रारंभ किया। हिन्दाल कलाप्रिय था। उसने काजी का क्षति उठाकर भी भारत मे बना रहा। कुछ राज्यवंशों बन्ध, लाल मस्जिद, अंधेरी उजाली नाम का एक बंगला के राज्यकाल में सभी धर्मवाले सानन्द रहे है । बनवाया था और उसके पास ही एक बाग लगाया,
उस समय अनेक सम्प्रदायों की तरह तिजारा में भी जिसकी पक्की दीवारें प्राज भी वहां पाई जाती है। जैन धर्मावलम्बी अपने धर्म का अवलम्बन करते हुए सन् १५४० में शेरशाह सूरी ने मुगलों को भारत से जीवन व्यतीत करते थे। उस समय जिन मदिर को देहरा' भगा दिया था। उस समय हिन्दाल को भी तिजारा छोड़ नाम से सम्बोधित किया जाता था। मुस्लिम शासनकाल कर बाहर भागना पड़ा था, जिससे उक्त लाल मस्जिद मे भी तिजारा का विशेष महत्व रहा है। यह उनका का निर्माण अधूरा ही रह गया था। इनने सन् १५३६ से प्रादेशिक शासन केन्द्र रहा है। मुगलों के शासनकाल में १५४५ तक राज्य किया है। तिजारा शाही खानदान के रहने योग्य समझा गया, अत- सं० १५८७ से १५९६ तक शेरशाह ने राज्य किया एव उसे 'हवेली तिजारा' के नाम से उल्लेखित किया है। और सं० १५९७ से १६०२ तक इस्लाम शाह ने गया। उस समय तिजारा एक सूबे का केन्द्र था और शासन चलाया। इसके शासनकाल मे सं० १६०० फाल्गुन उसके प्राधीन १८ परगने थे।
बदी दोइज शुक्रवार के दिन तिजारानिवासी काष्ठासंघ