Book Title: Anekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ प्रोम पहन अनेकान्त परमागमम्य बीजं निषिद्ध जात्यन्धसिन्धुरविधानम् । मकलनयविलसिताना विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ । वर्ष १६ किरण १-२, वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निवाण सवत् २४९२, वि०म० २०२३ (प्रल और जून । सन् १९६६ सम्यग्दृष्टि का स्तवन कविवर बनारसीदास भेद विज्ञान जग्यो जिनके घट, शीतल चित्त भयो जिम चंदन, केलि कर शिवमारग में, जगमांहि जिनेश्वर के लघु नंदन । सत्य स्वरूप सदा जिन्हके, प्रगढ्यो प्रवदात मिथ्यात निकंदन, सांत दशा तिन्हको पहिचान, कर करजोरि बनारसि वंदन ॥ ******************* ****************** मम्यकवंत सदा उर अंतर, ज्ञान विराग उभै गुन धार, जासु प्रभाव लख निज लक्षन, जीव प्रजीव दशा निरवार। मातम को अनुभौ करि हथिर, प्रापु तर अरु औरनि तार, साधि सुदर्व लहै शिव सर्म, सुकर्म उपाधि व्यथा वमि डार ॥ -नाटक समयसार

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