Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 675
________________ ६४६ सिरिअणंतजिणचरियं अप्पं संपइ जायं व जममुहा निग्गयं व मन्नंतो । वच्चंतो नियगामे पत्तो सो इह अरन्नम्मि ॥ ८२९६ ॥ पेच्छइ उस्सग्गठियं मुणिमेगमुत्तिमंतमिव धम्मं । पच्चक्खं पसमं पिव संकेयम्मि व मुणिगुणाण ॥ ८२९७ ॥ पुव्वुप्पन्नविराओ अवलोइय सो मुणिं ठिओ हिट्ठो । दारिद्दभरक्कंतनरो व्व संपत्तरयणनिही ॥ ८२९८ ॥ तो तं पणमइ तच्चलणकमलमिलमाणभालफलओ सो । सहलत्तं कलयंतो सजम्मजीवियनरत्ताणं ॥ ८२९९ ॥ आबद्धपाणिपउमो पुरओ उवविसिय जंपए एवं । रन्ने अमाणुसे पहु ! किं तवह तवं ति मह कहह ? ॥ ८३०० ।। पारिओ काउस्सग्गो उवविसिउं तस्स साहए साहू । . खेयरमुणी महायस ! अहमिह आयाविउं पत्तो ॥ ८३०१ ॥ जेणमिह तिरयविरईय कयत्थणा हणइ मज्झ दुक्कम्मं । वेज्जोवइट्ठपरमोसहं व रोयं समग्गं पि ॥ ८३०२ ॥ तेणुत्तं पुहु ! मह कहह किं पि धम्मं गिहत्थजणजोग्गं । 'तीरइ निव्वाहेउं जो सो उक्खिप्पए भारों ॥ ८३०३ ॥ आह मुणी गिहिणो वि हु जायइ धम्मो जिणिंदपूयाए । सा होइ अट्ठभेया अट्ठमयट्ठाणनिम्महणी ॥ ८३०४ ॥ नेवज्ज-धूव-दीवय-अक्खय-फल-सलिल-वासकुसुमेहिं । पूयंति जे जिणं ते पुज्जा तिजयस्स वि हवंति ॥ ८३०५ ॥ कीरंती एक्केक्का वि हरइ गुरुरोग-सोगदोगच्चे । किं पुण सव्वाओ वि हु विरइज्जती उ भत्तीए ॥ ८३०६ ॥ सव्वाओ वि असत्तो काउं जइ कुणइ धूवपूयं पि । ता धूवेण समं सो धुवं नियं महइ दुक्कम्मं ॥ ८३०७ ॥ डझंतधूवभवधूमधूविओ इव सुयंधसव्वंगो । जायइ भवंतस्स वि हु जीवो उक्खिविय जिणधूवो ॥ ८३०८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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