Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 734
________________ ७०५ गंधबंधुरकहा इय जंपिय कारविया पुरसोहा राइणा पहिडेण । मोत्तुं वीवाहमहं गिहीण परमूसवो नन्नो ॥ ९०६० ॥ पच्चोणीए तीए पेसइ सामंत-मंति-मंडलिए । गोरवमियरे वि गुरूविरइय किं नाणुरायपरे ॥ ९०६१ ।। पत्ताए तीए विहिओ रिद्धीए महामहो महीवइणा । इय उच्छाहे गच्छइ लच्छी जा सच्चिय न अन्ना ॥ ९०६२ ॥ आवासदाणसम्माणकरणपमुहं पि सागयंतीए । विहियमियरो वि पुज्जो अतिही किं पुण नरिंदसुया ? || ९०६३ ॥ उत्तमलग्गे कुमरो कुमरि वीवाहिओ नरिंदेण । कुलवुड्ढिकरे कज्जे किं कोइ पमायमायरइ ? ॥ ९०६४ ॥ तीए सह विसयसोक्खं माणइ कुणइ य सुधम्मकम्मं सो । इहलोईय परलोईयकज्जेसु समुज्जया गरुया ॥ ९०६५ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि कुमरं रज्जम्मि ठवियनरनाहो । कयपव्वज्जो संजायकेवलो मोक्खमणुपत्तो ॥ ९०६६ ॥ नवनिवई नीइए पालइ रज्जं अभिद्दवइ दुढे । सिढे पूयइ मन्नइ महायणं गुणिगुणे थुणइ ॥ ९०६७ ॥ एवं निरवज्जसरज्जकज्जकरणुज्जयस्स नरवइणो । जंति दिणाई दिणमणिकरभरसरिसप्पयावस्स ॥ ९०६८ ॥ जाओ कयाइ देवीए तीए सुहलक्खणो सुओ तस्स । काउं वद्धावणयं नाम गुणबंधुरो त्ति कयं ॥ ९०६९ ॥ लालिज्जतो धाईहिं वद्धिओ जाव पंच वरिसाइं । परिपाढिओ य अज्झावएहिं सव्वाओ वि कलाओ ॥ ९०७० ॥ पत्तो य जोव्वणं तरुणकामिणीनयणमणहरं रन्ना । परिणाविओ नरिंदाणं रम्मरूवाओ कन्नाओ ॥ ९०७१ ॥ दटुं तं रज्जमहाभरधरणसमत्थमुत्तमे लग्गे । अहिसिंचइ नियरज्जे राया रिद्धिप्पबंधेण ॥ ९०७२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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