Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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धम्मदेसणा
७१३
एयव्वयं गहेडं कज्जो जल-धन्न-इंधणाईण । तसजीववज्जियाणं परिभोगो भव्वसत्तेहिं ॥ ९१६३ ॥ जीवदय च्चिय जायइ जीवाणं कप्पियत्थकप्पलया । दीहाउयत्तहेऊ नीरोगत्तस्स उप्पत्ती ॥ ९१६४ ॥ सग्गसुहसिरिनिहाणं सव्वुत्तमपुन्नपायवंकूरो । सिवसुहयसंगदूई एक्कच्चिय होइ जीवदया || ९१६५ ॥ पाणीवहपवित्तीए हवंति दोसा तओ न सा कज्जा । इण्हि तु मुसावायस्सरूवमायन्नसु कहेमि ॥ ९१६६ ॥ अलियं न भासियव्वं जओ मुसा भासए जणे नूणं । सच्चं पि जंपमाणे न को वि कइया वि पत्तियइ ॥ ९१६७ ॥ अवसरइ साहुवाओ जायइ अजसे समुल्लसइ पावं । इहपरलोयविरुद्धं अलीयवयणं भणंतस्स ॥ ९१६८ ॥ दूसइ कन्ना गावीओ भूमिमज्जायमवहरइ छन्नो । नासं निन्हवइ पराण वियरए कूडसंखेज्जं ॥ ९१६९ ॥ सव्वं पि इममलीयस्स विसयमेयम्मि पंच अईयारा । जाणेऊणं सम्म परिहरियव्वा इमे ते य ॥ ९१७० ॥ सहसा कलंकणं रहसदूसणं दारमंतभेयं च । मोसोवएसणं कूडलेहकरणं च पंचमयं ॥ ९१७१ ॥ भणिया सामत्तेणं इमिणा एक्केकयं विसेसेण । तुज्झप्पबोहणट्ठा पयडिज्जइ ता निसामेसु || ९१७२ ॥ सम्मं वियाणिऊणं सड्ढो पाणंतपीडसंजणयं । सहसा अब्भक्खाणं न देइ चोरो तमिच्चाइ ॥ ९१७३ ॥ तुन्भेहिं कओ मंतो रायविरुद्धो सए वि विन्नाओ । इयरहसब्भक्खाणं सम्ममनाए न दायव्वं ॥ ९१७४ ॥ रइरसपसत्तसकलत्तगरुयविस्संभमंतियं नेव । हासेण वि मित्तस्स वि सुसावएणं न कहेयव्वं ॥ ९१७५ ॥
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