Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिअणंतजिणचरियं वावारवाउलो जं कयाइसामाइयं सए कज्जं । न सरइ कयमकयं वा एयमकरणं इहुत्तं च ॥ ९३०६ ॥ न सरइ पमायजुत्तो जो सामाईयं कयाओ कायव्वं । कयमकयं वा तस्स हु कयं पि विहलं तयं नेयं ॥ ९३०७ ॥ जं काउं सामईयं तव्वेलं चेव पारए सड्ढो । तं अणवट्ठियकरणं परिहरियव्वं जओ भणियं ॥ ९३०८ ॥ काऊण तक्खणे च्चिय पारेइ करेइ वा जहिच्छाए । अणवट्ठिय सामईयं अणायराओ न सुद्धं ति ॥ ९३०९ ॥ सामाईयव्वयमिमं भणियं देसावगासियं निव ! तं ।
आयन्नसु एक्कमणो साहिप्पंतं पयत्तेण ॥ ९३१० ॥ निच्चं पि जत्थ कीरइ संखेवो दिसिठियप्पमाणस्स । देसावगासियं तं भणियं सिक्खावयं बीयं ॥ ९३११ ॥ चयइ गिही आणयणपेसवणप्पओगदुगजुत्ते । सद्दाणुवाइरूवाणुवाइबहिपुग्गलक्खेवे || ९३१२ || छ । एयव्वयम्मि एए पंचइयारा पयासिया इण्हि । एयाणं एक्केक्कं तु ममायन्नसु निव ! कहेमो || ९३१३ ॥ न करेइ तिरियदिसिपहसंखाइक्कमभएणमिहसड्ढो । संदिसिऊणाणयणप्पओगमवरेण वत्थुस्स ॥ ९३१४ ॥ कज्जेण वि नो वा तिरियदिसिकयं संखमइक्कमनियकज्जो । नियनरपेसप्पओगो भव्वेणेयव्वयपरेण ॥ ९३१५ ॥ अंगीकयखित्तब्भंतरट्ठिओ तस्साइक्कमणभएण । अप्पपयडणकज्जे न कुणइ सद्दाणुवायं पि ॥ ९३१६ ॥ नियमिय खित्तठिएणं सकज्जसाहण कए न सड्ढेण । ठाऊणुच्चे कज्जो नियाणरूवाणुवाओ वि ॥ ९३१७ ॥ पोसहसालाइट्ठाणगेसु परिविहियपोसहो न गिही । बाहिं पुग्गलखेवेण कुणइ सयणाण सन्नाओ || ९३१८ ॥ छ |
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