Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 752
________________ ७२३ धम्मदेसणा वयणनयणस्सवणकंपणाईहिं तो विहेयव्वं । कुक्कुईयं सद्देहिं तरुणीजणकयमणुम्मायं ॥ ९२९३ ॥ जं किं पि आलजालप्पायमसंबद्धभायणं तमिह । भन्नइ मोहरियं उभयभवविरुद्धं चएयव्वं ॥ ९२९४ ॥ वसह-सगडाण मुसलुक्खलाण मेलियघरट्टपुडयाण । न कुणइ जोगवज्जियसंजुयअहिगरणओ सड्ढो || ९२९५ ॥ जं निय सरीरउवओगकारयं तस्स समहियं सययं । उवभोगपरीभोगाइरेगमवि सावओ चयइ ॥ ९२९६ ॥ भणियं अणत्थदंडव्वयमसंपयं पवक्खामि । सिक्खावयाण पढमं सामाईयनामयं इन्हिं ॥ ९२९७ ॥ गिहिणो सावज्जवज्जणरूववावारचायसेवाहिं । सामाईयव्वयं इह पंच इमे हुति अइयारे ॥ ९२९८ ॥ मण-वयण-काय-दुप्पणिहाणं परिहरइ सइ अकरणं च । तह अणवट्ठियकरणं भणिमो एक्केक्कयं इन्हेिं ॥ ९२९९ ॥ कह सयणे पोसिस्सं कह धणमज्जिस्समरिवि हणिस्सं । इयमणदुप्पणिहाणं कज्जं न जओ इमं भणियं ॥ ९३०० ॥ सामाइयं ति काउं घरचिंतं जो उ चिंतए सड्ढो । अट्टवसट्टोवगओ निरत्थयं तस्स सामईयं ॥ ९३०१ ॥ नो वयणमसंबद्धं भासेयव्वं न कक्कसं नवरं । वयदुप्पणिहाण-विवज्जएण सड्ढेण भणियं च ॥ ९३०२ ॥ कयसामईओ पुव्वि बुद्धीए पेहिऊण भासेज्जा । सइनिरवज्जं वयणं अन्नह सामाईयं न भवे ॥ ९३०३ ॥ करचरणाईणंगाण ठवेणं जमनिरिक्खए ठाणे । दुप्पणिहाणं कयस्स तं चइयव्वमुत्तमजणं च ॥ ९३०४ ॥ अनिरिक्खिय अपमज्जिय थंडिल्ले ठाणमाइसेवंतो । हिंसा भावे वि न सो कयसामईओ पमायाउ ॥ ९३०५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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