Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 756
________________ एक्कारसपडिमा ७२७ न सव्वमिह देसविरईए समहियं सव्वं विरइऊणयरं । किं पहु ! किं पि अणुट्ठाणमत्थि सड्ढाणमुचियं जं ॥ ९३४५ ॥ जंपइ जइ उ सामी ! अत्थि रायगुरुसत्तसेवणिज्जाओ । एक्कारस पडिमाओ सड्ढाणं वयअसत्ताण ॥ ९३४६ ॥ तहाहि - दंसण१ वय २ सामाईय ३ पोसह ४ पडिमा ५ अबंभ ६ सच्चित्ते ७ । आरंभ ८ पेस ९ उद्दिट्ठवज्जए १० समणुभूए य ११ ॥ ९३४७ ॥ दंसणमिह सम्मत्तं भंगहियाभिग्गहस्स सड्ढस्स । संकाइएइयारे पयत्तओ परिहरंतस्स ॥ ९३४८ ॥ मिच्छत्तपरिच्चाया कुग्गाहविवज्जियस्स सस्थस्स । दूरमणाभोगेण वि अविवज्जत्थस्सहावस्स ॥ ९३४९ ॥ अत्थिक्कायगुणालंकियस्स सुहकम्मबंधनिरयस्स । रायाभिओगपमुहं छिंडियछक्कं चयंतस्स ॥ ९३५० ।। दाणाइकुतित्थेणं चइरस्स कुदेवयाण पूयथयाइं । कंठस्सिणाण पुव्वं परिहेउं नवंगवत्थाई ॥ ९३५१ ।। संझा तिगे जिणच्चणपरस्स मुणिवंदणं कुणंतस्स । एसा मासपमाणा दंसणपडिमा हवइ पढमा ॥ ९३५२ ॥ अह अवरा तस्सेव य पढमप्पडिसुत्तकिरियनिरयस्स । थूलाणुव्वयपंचगपालणपडिवत्तिजुत्तस्स ॥ ९३५३ ॥ बंध-वहप्पमुहवयाइयारसंदोहवज्जणपरस्स ।। अइदुहियसत्तसंताणजणयगरूयाणुकंपस्स || ९३५४ ॥ सविसेससुद्धधम्मस्सवणाइमुणेह अज्जणुज्जमिणो । मासे दुगप्पमाणे वुच्चइ एसा वयप्पडिमा ॥ ९३५५ ॥ अह अवरा तस्सेव य पुव्वदुपडिमा विहिं कुणंतस्स । सावज्जकज्जवज्जणपरमा निरवज्जकयकम्मा ॥ ९३५६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778