Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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काऊण बंभचेरं जं पत्थइ उभयभवभवे भोए । जमवावारो होउं चिंतइ सावज्जवावारे ॥ ९३३२ ॥ आहाराईणं पोसहाण तं अणणुपालणं सव्वं । परिहरइ सावओ आगमुत्तविहिणा गयपमाओ || ९३३३ || एयं पयंपियं पोसहव्वयं संपयं पयासेमो । वयमतिहिसंविभागाभिहमिहसिक्खावयं तुरियं ।। ९३३४ ।। साहूण नाण- दंसण - चरित्तजुत्ताण गेहपत्ताण । असणाइदाणओ अतिहिसंविभागं विणिज्जिह ।। ९३३५ ।। सच्चित्ते निक्खिवणयं सह सचित्तेण पिहणयं बीयं । कालाइक्कमदाणं अन्नव्ववएसयं च तहा ९३३६ ॥ मच्छरिययं च एए पंचइयारा वयम्मि एयम्मि । एयाणं एक्केक्कं साहिप्पंतं निसामेसु ॥ ९३३७ ॥ धन्न-फल-सलिल-कुंभाइएस ठाणेसु मोत्तुमसणाई । वाहरिऊण न गिहिणा दायव्वं साहुवयणेण ॥ ९३३८ || फलसलिलधण्णाईएहिं पिहिऊणं नेव आहारो । वियरिज्जइ साहूणं कयाइ सुविवेयसड्ढेण ॥ ९३३९ ॥ निय नियमसंगभीओ आमंतइ विहियभोयणे मुपिणो । सुस्सावओ न जं तं कालाइक्कंतदाणं ति ॥ २३४० ॥ साहूहिं जाइएणं दाउमकामेण नेव वत्तव्वं । अन्नव्ववएसेणं सड्ढेणं निययवत्थं पि ॥ ९३४१ ।। रोरा वि दिंति दाणं तुच्छं कहमवि अहं न जच्छामि । इय बुद्धीए न देयं दाणं मच्छरियरूवेण ॥ ९३४२ ॥ छ ॥ एसा हु देसविरई सम्मत्तपुरस्सरा तुह नरिंद ! । कहिया कमेण भावेण कीरमाणसिवेक्कफला ।। ९३४३ ॥
सिरिअणंतजिणचरियं
सोउं पहुप्पउत्तं सुप्पहराया पुणो वि पणयोि । जंपइ गिहिव्वयाई सव्वाइं वि सामि ! नायाई ॥ ९३४४ ॥
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