Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 768
________________ ७३९ जिणनिव्वाणवण्णणं पुहईए कणयपंकयगमणो गंगाए रायहंसो व्व ।। विहरेउं पारद्धो लीलाए सउणगणसारो ॥ ९४९८ ॥ अणुगम्मतो जसगणहराइं पन्नाससंखसूरीहिं । चउद्दसपुव्वधराण य नवहिं सएहिं अणूणेहिं ॥ ९४९९ ॥ ओहिन्नाणिमुणीणं तेयालीसइसएहिं संजुत्तो । मणपज्जवनाणिजईण संगओ पंचसहसेहिं ॥ ९५०० ॥ तहेव केवलनाणीण पंचसहसेहिं समणवसहाण । वेउब्वियलद्धीणं अट्ठहिं सहसेहिं अणुसरिओ ॥ ९५०१ ।। बत्तीससएहिं वाईयाण साहूण जायपरिवारो । छासट्ठिसहससंखेहिं सव्वसमणेहिं कयसेवो ॥ ९५०२ ॥ पउमा पवत्तिणिप्पमुहसाहुणीणं बिसट्ठिसहसेहिं । जुज्जतो सड्ढेहि य दुलक्खछसहस्ससंखेहिं ॥ ९५०३ ॥ लक्खेहिं चउहिं चउदससहसेहि य सावियाण परिकलिओ । कयपरिवेढो इंदाइचउव्विहामरसमूहेहिं ॥ ९५०४ ॥ पायालाभिहजक्खेण तह वि जिंभिणियजक्खिणीयाए । रक्खिज्जमाणपवयणउद्दवो निययसत्तीए ॥ ९५०५ ॥ मगहंग-वंग-कुंतल-केरल-कन्ना-तु लाड-दविडेसु । वयराड-चोड-मेवाड-मलय-पंचालपमुहेसु ॥ ९५०६ ॥ देसेसु समवसरणागयाण सुर-मणुय-तिरिय-नियराण । दितो सम्मदसणसामन्न-गिहिव्वयं वूहं ॥ ९५०७ ॥ जंपतो परितित्थियनियरं तरणि व्व तारयुक्केरें । निम्महिय समग्गमओ वियंभमाणो मइंदो व्व ॥ ९५०८ ॥ अवहरमाणो जड्ड सेवयलोयस्स जलिरजलणो व्व । संतावमवहरंतो लोयाणं सिसिरकिरणो व्व ॥ ९५०९ ॥ सत्ताणमवणयंतो पीऊसरसो व्व रोय-आयंके । परमूसवो व्व आणंदकारओ विहरिय महीए ॥ ९५१० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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