Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 769
________________ ७४० सिरिअणंतजिणचरियं निम्मलनाणवियाणिय नियाओ अंतो जिणेसरो अणंतो । सम्मेयसेलनामे रुंदगिरिंदम्मि संपत्तो ॥ ९५११ ॥ सिवगयअजियाइजिणिंदरुंदमणिकिरणविच्छुरिओ । रोहणगिरि व्व अत्थीण जणइ जो सव्वया सद्धं ॥ ९५१२ ॥ जस्स सिहरग्गभूमीए भासए संठियं तमालवणं । सिवगयजिणमुक्कभवोवग्गाहयकम्मपडलं व ॥ ९५१३ ॥ जो चउपासवियासिढुमसियकुसुमोहधवलिओ सहइ । निव्वाणजाइ जिणनाहकेवलुज्जोयजुत्तो व्व ॥ ९५१४ ॥ तम्मि रविबिंबखलणक्खमसिंगग्गे पहू समारूढो । विरईय पत्थाणो विव विहाइ सिवनयरगमणत्थं ॥ ९५१५ ॥ कणयप्पहपहुतणुतेयपिंजरायव्व कंचणमयाए । सिहरसिलाए सामी परिट्ठिओलंकिओ मज्झ || ९५१६ ॥ तत्तो तक्कालो च्चिय हिओवएसेहिं फुरियकारुन्नो । संघमणुसासिऊणं गणहरपमुहं सुरोहं च ॥ ९५१७ ॥ तो तीए सिलाए च्चिय चउब्विहाहारकयपरिच्चाओ । आजाणुलंबिबाहू काउस्सग्गे ठिओ सामी ॥ ९५१८ ॥ तयणुकयाणसणम्मि तिहुयणतिलए अणंतजिणराए । संघे चउव्विहम्मि वि परिदेवंते सउव्वेयं ॥ ९५१९ ॥ वामकरगयकवोले सोयगलंतंसु तंबिरच्छिदले । सक्कप्पमुहसुरासुरविसरे दूरं दुहं पत्तो ॥ ९५२० ॥ अद्धट्ठमलक्खाई वरिसाणइवाहिउं कुमारत्ते । तो रज्जसिरिं पन्नरसवरिसलक्खाई उवभुत्तुं ॥ ९५२१ ॥ परिपालियपव्वज्जं वरिसाणद्धट्ठमाई लक्खाई । एवमणुभवियवरिसाण तीस लक्खाइं सव्वाउं ॥ ९५२२ ॥ चेत्तसियपंचमीए रेवइनक्खत्तमुवगए चंदे । तीसइमे उववासे संजाए अणसणग्गहणो ॥ ९५२३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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