Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 764
________________ ७३५ पयावसुंदरनिवकहा किं न वुत्तं ति संलत्ते सीलसारेण खेयरो । जंपए बुद्धपायाण पणओ भवभावओ ॥ ९४४६ ॥ तेणुत्तं वीयरायाण निग्गंथाण गुरूण य । नमामि भावेण निच्चं न अन्नस्स कयाइ वि ॥ ९४४७ ॥ जेणासारं सरीरं मे सारं सम्मत्तमुत्तमं । जाही मए समं भद्द ! संमत्तं न सरीरयं ॥ ९४४८ ॥ सम्मत्तम्मि ममत्तं मे परलोयसुहावहे । नेवोवयारहीणम्मि सरीरम्मि विणस्सरे ॥ ९४४९ ॥ कल्लाणकंदलीकंदो जिणधम्मजयद्धओ । सुहभावडुमारामो माणमाणिक्करोहणे ॥ ९४५० ॥ समामयनईनाहो पुन्ननीरपओहरो । दयाकप्पलयामेरू सम्मत्तं परिकित्तियं ॥ ९४५१ ॥ पडिही निच्छियं देहो पच्छा वा संपयं पि वा । ता खेयर ! न मे मोहो देहकज्जम्मि निज्जए ॥ ९४५२ ॥ एवं पयंपमाणस्स तस्स पासं समागओ । अग्गीलग्गो य पाएसु भत्तचित्तो व्व सावओ ॥ ९४५३ ॥ दुज्जणो इव पारद्धो दहेउं तस्सरीरयं । सामीकुव्वं सधूमेण अयसो व्व समंतओ ॥ ९४५४ ॥ दूरदेसीयबंधु व्व गाढमालिंगए तयं । एवं डझंतदेहे सो एसमामयभाविओ ॥ ९४५५ ॥ पंचप्पहुनमोक्कारं उच्चरंतो पुणो पुणो । जंपिओ खेयरेणेवं मुहा मूढ ! मरेसु मा ॥ ९४५६ ॥ भगवं ! तस्स बुद्धस्स पाए सरसु अज्ज वि ।। तेणाहं तुज्झ रक्खत्थं पेसिओ त्ति भणामि तं ॥ ९४५७ ॥ भणियं सीलसारेण मा मे धम्मंतराइयं । करेसु जीवियव्वम्मि तुच्छे सुंदरसंपयं ॥ ९४५८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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