Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 741
________________ ७१२ सुहभावकलासंकलसेयपरकुत्थरोहिणीरमणो । कल्लाणकणयमेरू विसुद्धसम्मत्तमक्खायं ॥ ९१५० ॥ अंगीकयसम्मत्तस्स कस्सई भवइ भाविभद्दस्स । जिणदिक्खाए असत्तस्स परिणई देसविरईए ।। ९१५१ ।। पंचेवऽणुव्वयाई हवंति सिक्खावयाई सत्तेव । एयाण देसविरई थूलाणणुपालणा होइ ।। ९१९५२ ॥ सिं पढमं भन्नइ थूलगपाणायवायवेरमणं । तम्मि न संकप्पेणं कायव्वो थूलजीववहो ।। ९१५३ ।। सयमेव किलिस्ते जीवे जो हणइ सो महापावो । नूणमभव्वो अहवा विन्नेओ दूरयरभव्वो ।। ९१५४ ॥ जइ जीवाण न तीरइ काउं उवयारमुत्तमं ता किं । अवयारो कायव्वो ? ताण वरायाण पावकरो ।। ९९५५ ॥ तन्नियमपरो सड्ढो वज्जइ बंधवहच्छविच्छेयं । अइभारारोवणं भत्तपाणवोच्छेयणं च तहा ।। ९९५६ ।। एए पंचइयारा पढमम्मि अणुव्वए चएयव्वा । तुम्हावबोहणट्ठा भणिमो एक्केक्कगमियाणि ॥ ९१५७ ॥ जेणागच्छइ मुच्छा पीडा उप्पज्जए नरपसूणं । कोवेण न कायव्वो सो बंधो दामणाइहिं ।। ९१५८ ॥ नो रोसरयवसेहिं निद्दयलउडय - कसाइएहिं वहो । कज्जो नरतिरियाईण पावपब्भारसंजणओ ॥ ९९५९ ॥ कन्नवियारणदंभणं कंबलई विकड्ढणाइ छविछेओ । नडुलीचउप्पयाणं कायव्वो पावसंजणओ ।। ९१६० ।। नर-करह-वसह- सेरह - खराणमुट्टियाउ समहिउ भारो । न समारोवेयव्वो पावकरो सावएहिं सया ।। ९१६१ ।। रागद्दोसवसेहिं न दासिदासाईयाण कायव्वो । वसहाइतिरिच्छाण य वोच्छेओ भत्तपाणाण ।। ९१६२ ।। Jain Education International सिरिअणंतजिणचरियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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