Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 748
________________ धम्मदेसणा ७१९ इह वज्जइ उड्ढाहो तिरियदिसा-तिग-पमाणाइक्कमणं । तह खित्तवुड्ढिमहसइअंतद्धाणं च पंचमयं ॥ ९२४१ ॥ एए पंचइयारा कहिया संखेवओ इयाणिं तु ।। एक्केक्कं आयन्नसु साहिप्पंतं विसेसेण || ९२४२ ।। कज्जेण वि गंतव्वं उद्धदिसिनिसिद्धखेत्तबाहिं नो । आणयणपेसणोभयपओगकरणं पि चइयव्वं ॥ ९२४३ ॥ एमेव अहो तिरियं च दिसिद्दुगं नो अइक्कमेयव्वं । अंगीकयनिययव्वयभंगभयसोवएहिं सया ।। ९२४४ ॥ अन्नदिसि जोयणाइं निक्खिविउं अन्नदिसिपमाणं पि । कायव्वा कज्जेण वि न खेत्तवुड्ढी सुसड्ढेहिं ॥ ९२४५ ॥ न पमापपरायत्तेहिं सावएहिं कयाइ कायव्वो । दिसिमाणसइब्भंसो अवयासो पावपसरस्स ॥ ९२४६ ।। एयमइयारपंचगमभिवज्जंतो समज्जए पुन्नं ।। सव्वेसि पि हु सत्ताण देइ अभयप्पयाणं च ॥ ९२४७ ॥ कहियं दिसिपरिमाणं तुह राय ! इमं गुणव्वयं पढमं । उवभोगपरीभोगाभिहमिहि बीयमक्खेमो ॥ ९२४८ ॥ कुसुमाहारविलेवणतंबोलप्पमुहविविहभेएण । सह भोज्जेणं भन्नइ उवभोगो वत्थुजाएण ॥ ९२४९ ॥ जो उवओगं गच्छइ पुणो पुणो मुणह परिभोगं । सो सयण--जाण-मंदिरवत्थाहरणं गणाईओ || ९२५० ॥ एयव्वयं तु दुविहं भोयणओ कम्मओ य होइ जहा । सयलाइयारसुद्धं तह आयन्नसु कहिज्जतं ॥ ९२५१ ॥ भोयणओ उस्सग्गेण ताव सुस्सावएण भोत्तव्वो || ९२५२ ॥ फासुयआहारो तदभावे अप्फासुयमचित्तं ॥ ९२५३ ॥ तं पि हु अपावमाणो भुंजइ असणाइयं सचित्तं पि ॥ नवरं भोयणओ चयइ सावओ एय वत्थूणि ॥ ९२५४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778