Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 739
________________ ७१० सिरिअणंतजिणचरियं मणिमयसुहासणासीणजद्दरावरियनीलछत्ताहिं । अंतेउरीहिं छत्तीससहससंखाहिं परियरिओ ॥ ९१२५ ॥ माकरमेहडंबरनवरंगयधवलछत्तपंतीहिं । धयचिंधालंबेहिं य अलंकरंतो नहुच्छंगं || ९१२६ ॥ आयन्नंतो मागहमंडलउच्चरियभूरियथुइपाढे । बहिरंतो बंभंडं वज्जिरआउज्जसद्देहिं ॥ ९१२७ ॥ चलिओ तिलोयनायगनमणत्थं असरिसाए रिद्धीए । पत्तो य कमेण समोसरणं भरहद्धभूमिवई ॥ ९१२८ ॥ जगगुरुदेसणसरसवणसमयपम्मुक्कसगयनिवचिंधो । उत्तरपउलिदारेण पविसए समवसरणम्मि || ९१२९ ॥ दठूण भुवणनाहं जय जय जय जय पहु त्ति जंपतो । पविसिय सहाए कयतिप्पयाहिणो नमिय संथुणइ ॥ ९१३० ।। जय सयलतिजयनायग दायग सग्गापवग्गसोक्खाण । निस्सेसदुरियवारण वारणलीलाविहियगमण ॥ ९१३१ ॥ हिमहारहंससियजसधवलिय निस्सेसतिहुयणाभोग ।। भोगोवभोगवज्जिय निज्जियमयरद्धय नमो ते ॥ ९१३२ ।। इय थोउं भुवणपहुं अभिवंदिय गणहराइए मुणिणो । हरिपिट्ठीए निविट्ठो हरी वि सुपहाइरायजुओ || ९१३३ ॥ एत्थंतरम्मि मोणट्ठियासु सामी समग्गपरिसासु । पारद्धो वागरिउं धम्म सम्मत्तसंजुत्तं ॥ ९१३४ ॥ तहाहि - तिहुयणगब्भे जं किं पि वत्थुसव्वुत्तमं सिवसुहंतं । तं सव्वं पि हु भव्वाण भवइ धम्मप्पभावेण || ९१३५ ॥ जं पुण असुहसमुत्थं दुक्खं सत्ताण भवनिवासम्मि । तं सव्वमवि हरिज्जइ हेलाए विसुद्धधम्मेण ॥ ९१३६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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