Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 737
________________ ७०८ सिरिअणंतजिणचरियं जगगुरुकमकमलजओ विउसठाणे दुवालस विहो वि ।। तिहुयणलोगो सव्वो वि तह तिरिच्छा वि संपत्ता ॥ ९०९९ ॥ एत्थंतरम्मि उज्जाणपालओ भमरसुंदरो नाम । पत्तो भरहद्धाहिवपुरिसुत्तमवासुदेवगिहे || ९१०० ॥ पडिहाराणुन्नाओ माणिक्कमयाए पविसइ सहाए । नियई य अच्चब्भुयपुन्नपयरिसावासमवणिवई ॥ ९१०१ ॥ सेविज्जंतं तणुतेयपसरभरदुरवलोयमुत्तीहिं । विरईय करकोसेहिं जक्खाणट्ठहिं सहस्सेहिं ॥ ९१०२ ।। तह मउडबद्धसोलससहस्सनिवईहिं भत्तिजुत्तेहिं । आराहिज्जंतं नियपहुत्तनिज्जियसुरिंदेहिं ॥ ९१०३ ॥ वीइज्जंतं कमणीयकामिणीकरचलंतचमरेहिं । आयन्नंतं करकलियकेलिकमलालिकुलरोलं ॥ ९१०४ ॥ आमलयथूलमुत्ताभरणालंकरियसामलंगेण । सारयनिरन्मतारयदंतुरियनहं विडंबतं ॥ ९१०५ ॥ भिन्दिनीलसामं पीयं वरजुयलरइयपावरणं । अरुणारुणप्पहाभरसंवलियं अंजणगिरि व्व ॥ ९१०६ ॥ सन्नंदयं दुहा वि हु दुहा वि सारंगविलसिरसिरीयं । वरसंखमुभयहा वि हु दुहा वि गुरुसुओ ण रायसियं ॥ ९१०७ ॥ दाहिणपासमहासणनिविट्ठगुरुभाइसुप्पहनिवेण । समलंकरियं नियसियपहनिज्जियचंदजोन्हेण ॥ ९१०८ ॥ करकलियचक्करयणुच्छलंतरुइभरपिसंगतणुजठिं । सव्वंगीणाभरणफुरियपहाभरदुरवलोयं ॥ ९१०९ ॥ (कुलयं) तं दटुं मणिकुट्टिममिलंतभालयमणहरं पणओ । उज्जाणपालओ विन्नवेइ सिररईयकरकोसो ॥ ९११० ॥ तुब्भे वद्धाविज्जह पहुणो तिजयाहिवो जिणोऽणंतो । सहयारसारनामे उज्जाणे अज्ज संपत्तो ॥ ९१११ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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