Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 733
________________ ৩০৪ सिरिअणंतजिणचरियं तव्वेलं चिय मंडलिय-मंति-सामंत-धाइसंजुत्ता ।। बलकलिया पट्ठविया सयंवरा कन्नया तुज्झ ॥ ९०४७ ॥ तीए अहं सत्थकहा कव्वविणोएसु सव्वया सचिवो । तो तं मोयावेउं तं बद्धाविउमहं पत्तो || ९०४८ ॥ चउ पंच दिवसमज्झे सा वि हु तुह पुव्वभवपिया एही । इय विन्नविउं कुमरं कीरो मोणं समल्लीणो ॥ ९०४९ ॥ तं सोउं जाईसरेण नायनियपुव्वभवदुगो कुमरो ।। कुमरिं पइ जायदढाणुरायवसपरवसो जाओ ॥ ९०५० ॥ चिंतइ तईया दइया निच्चं पि हियं पयंपमाणी वि । न मए तिणं व गणिया अहो अहंकारमूढेण ॥ ९०५१ ॥ दुईतो वि दरिद्दो वि दुम्मुहो वि हु सइ हीए तीए अहं । ईसरसेट्ठिसुयाए वि पुव्वभवे नेव परिहरिओ || ९०५२ ॥ ताहमवि पुव्वभवो भव कंतं मोत्तुमकाहमन्नपियं । रंज्जिज्जइ इह भविए वि किं न परभवे भवे रत्ते ॥ ९०५३ ॥ इय परिभाविय विज्जावणद्धनियमुद्दीयाओ कीरस्स । निक्खिवइ चरणजुयले कंठम्मि पुणो रयणकडयं ॥ ९०५४ ॥ भणई य कीर ! तुम उभयहा वि सउणो कहेसि कल्लाणं । न हि निग्गुणाण एवं रूवपवित्ती हवइ नियमा ॥ ९०५५ ॥ ता तं गंतुं कुमरीए कहसु कीरेस ! ईय मह पइन्नं । तीए जहा संपज्जइ मह विसए मणसमाहाणं ॥ ९०५६ ॥ आएसो त्ति भणित्ता तयणु सुओ उड्डिऊण संपत्तो । कुमरीपासे सोऊण तं ठिया सा वि संतुट्ठा || ९०५७ ॥ कुमरवयंसेहिं इमं सव्वं पि हु साहियं नरिंदस्स । तं सोउं तेणुत्तं किमजुत्तमिमम्मि कल्लाणे || ९०५८ ॥ जं गरुयरायकुमरी सयंवरा एइ गुरुनिवसुयस्स ।। इहभवभवा वि किं पुण भवंतरुप्पन्नअणुराया ॥ ९०५९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778