Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिअणंतजिणचरियं
तव्वेलं चिय मंडलिय-मंति-सामंत-धाइसंजुत्ता ।। बलकलिया पट्ठविया सयंवरा कन्नया तुज्झ ॥ ९०४७ ॥ तीए अहं सत्थकहा कव्वविणोएसु सव्वया सचिवो । तो तं मोयावेउं तं बद्धाविउमहं पत्तो || ९०४८ ॥ चउ पंच दिवसमज्झे सा वि हु तुह पुव्वभवपिया एही । इय विन्नविउं कुमरं कीरो मोणं समल्लीणो ॥ ९०४९ ॥ तं सोउं जाईसरेण नायनियपुव्वभवदुगो कुमरो ।। कुमरिं पइ जायदढाणुरायवसपरवसो जाओ ॥ ९०५० ॥ चिंतइ तईया दइया निच्चं पि हियं पयंपमाणी वि । न मए तिणं व गणिया अहो अहंकारमूढेण ॥ ९०५१ ॥ दुईतो वि दरिद्दो वि दुम्मुहो वि हु सइ हीए तीए अहं । ईसरसेट्ठिसुयाए वि पुव्वभवे नेव परिहरिओ || ९०५२ ॥ ताहमवि पुव्वभवो भव कंतं मोत्तुमकाहमन्नपियं । रंज्जिज्जइ इह भविए वि किं न परभवे भवे रत्ते ॥ ९०५३ ॥ इय परिभाविय विज्जावणद्धनियमुद्दीयाओ कीरस्स । निक्खिवइ चरणजुयले कंठम्मि पुणो रयणकडयं ॥ ९०५४ ॥ भणई य कीर ! तुम उभयहा वि सउणो कहेसि कल्लाणं । न हि निग्गुणाण एवं रूवपवित्ती हवइ नियमा ॥ ९०५५ ॥ ता तं गंतुं कुमरीए कहसु कीरेस ! ईय मह पइन्नं । तीए जहा संपज्जइ मह विसए मणसमाहाणं ॥ ९०५६ ॥ आएसो त्ति भणित्ता तयणु सुओ उड्डिऊण संपत्तो । कुमरीपासे सोऊण तं ठिया सा वि संतुट्ठा || ९०५७ ॥ कुमरवयंसेहिं इमं सव्वं पि हु साहियं नरिंदस्स । तं सोउं तेणुत्तं किमजुत्तमिमम्मि कल्लाणे || ९०५८ ॥ जं गरुयरायकुमरी सयंवरा एइ गुरुनिवसुयस्स ।। इहभवभवा वि किं पुण भवंतरुप्पन्नअणुराया ॥ ९०५९ ॥
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