Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 730
________________ ७०१ गंधबंधुरकहा सम्मत्तजुया दोन्नि वि दिति सिवं तं पि मुणसु सम्मत्तं । गयरायदेव-निग्गंथसुगुरुनवतत्तसद्दहणा || ९००८ ॥ एगयरं पि असत्तो धम्म काउं करेइ भावेण । अट्ठप्पयारपूयं जिणाण जं सा वि सिवजणणी ॥ ९००९ ॥ नेवज्ज-कुसुम-अक्खय-दीवय-फल-सलिल-धूव-वासेहिं । इय अट्ठविहा पूया कया जिणिंदाण भवहरणी ॥ ९०१० ॥ अट्ठ वि काउमसत्तो सत्तो जइ कुणइ वासपूयं पि । तित्थेसरस्स ता जाइ तस्स पावं जओ भणियं ॥ ९०११ ॥ घणसारहरिणनाहीसुयंधवरवासखेवपूयमिसा । जिणपवणसंगमेण व पावरयं दूरमुड्डेइ ॥ ९०१२ ॥ ता धम्मसीलपत्तं मणुयत्तं मा मुहा तुमं नेसु । समुवज्जसु वासेहिं वि पूइत्तु जिणं परमपुन्नं ॥ ९०१३ ॥ इय सोउं सो धम्मदेसणं सूरिणो नमिय भणइ । पहु ! मह महापसाओ कओ इमं साहिओ धम्मं ॥ ९०१४ ॥ नूण निरीहा तुब्भे परोवयारेक्कबद्धवावारा । जं मह दरिद्दियस्स वि एयं धम्मं समाइसह ॥ ९०१५ ॥ इय जंपिय पणयगुरू गहियतणाई गओ गिहे नियए । कहिओ य भारियाए पूयाफलसवणवुत्तंतो || ९०१६ ॥ तीयुत्तमहम्मफलं पिय ! तुह सव्वं पि कुणसु ता धम्मं । जेण न भवंतरे वि हु विडंबणा एरिसी होइ ॥ ९०१७ ॥ तेणुत्तमिमं काहं ति जंपिउं गंधियावणम्मि गओ । तणभारयमुल्लेणं गहिया सव्वुत्तमा वासा ॥ ९०१८ ॥ तत्तो हिययम्भंतरवियंभिउद्दामभत्तिपन्भारो ।। जिणमंदिरम्मि चलिओ रयणमए तम्मि पत्तो य ॥ ९०१९ ॥ सच्छप्फालिहदीहरदंडेऽनिलपसरिया सियवडाया । जम्मि सुरेहिं वि नज्जइ सविम्हयं गयणगंग व्व ॥ ९०२० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778