Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 728
________________ गंधबंधुरकहा ६९९ खजूर-दक्ख-दाडिम-अंबय-खारक्क-सक्कराईयं । दिन्नं अन्नाण न दायगेण से भायणं दिळें ॥ ८९८२ ॥ तह सालि-सूय-सालणय-सप्पिपक्कन्नपेयपमुहाण । किं पि न खित्तं अद्दिस्सभूमितलसुक्कथाले से ॥ ८९८३ ॥ दठूण दहिविमिस्सं भुजंतो फुरियगरुयअवमाणो । सिररइयभायणो तेसिमग्गओ नच्चिरो पढइ ॥ ८९८४ ॥ हे दारिद्र ! नमस्तुभ्यं सिद्धोऽहं त्वत्प्रसादतः । जगत् पश्यामि येनाहं न मां पश्यति कश्चन” ॥ ८९८५ ॥ एए मह जणयसहोयरस्स पुत्त त्ति भायरो मज्झ । भाउज्जायाओ इमाओ भाइणिज्जा इमे सव्वे ॥ ८९८६ ॥ जह मंततंतविज्जाइएहिं सिद्धा हवंति अद्दिस्सा । जाणह तहा ममं पि हु नूणं दारिद्दसिद्धो त्ति ॥ ८९८७ ॥ जइ होमि न सिद्धो हं ता दिट्ठो किं निएहिं वि इमेहिं । सयणेहिं न सव्वेहिं वि भोयणकरणोवविट्ठो वि ॥ ८९८८ ॥ सोजन्नं सुहिभावं सयणत्तं परिचयं च दक्खिन्नं । कुणइ धणड्ढेण समं दरिद्दिणा नेव सव्वजणो || ८९८९ ॥ जो भोयणवत्थाई ववहारे काउमक्खमा नूणं । जह मह तह अन्नाण वि न कीरए कावि पडिवत्ती ॥ ८९९० ॥ सुद्धा जाई सव्वुत्तमं कुलं निम्मला कलाओ वि । धणरहियाण न किंचि वि सया वि जेणेरिसं भणियं ॥ ८९९१ ॥ जाई कुलं कलाओ तिन्नि वि पविसंतु कंदरे विवरे । अत्थो च्चिय परिवड्ढउ जेण गुणा पायडा हुंति” ॥ ८९९२ ।। केणावि कारणेणं न इमेहिं पलोईओ इय भणंतो । नीहरिओ सो अवमाणदूमिओ नियगिहं पत्तो ॥ ८९९३ ॥ पियमइवारंतीए वि न ठिओ ता एत्तियस्स जोग्गो तं । इय जंपिरीए भज्जाए भोइओ सीयरब्बाइं ॥ ८९९४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778