Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 729
________________ ७०० सिरिअणंतजिणचरियं दारिद्देणं दूरं दूमिज्जंतस्स तस्स वच्चंति । दिवसा विसायवसयस्स अन्नया सो गओ रन्ने ॥ ८९९५ ॥ पेच्छइ य तरुच्छायाए संनिविढे मुणीसरे संते ।। सिद्धंतसुंदरक्खे दिक्खे सिक्खाए साहूण ॥ ८९९६ ॥ जे समयग्गंथा इव सहति आयारवाणसमवाया । विन्नाया धम्मकहा पहव्वायरणपरमा य ॥ ८९९७ ॥ धणनाससयणपरिहवदुस्सहदोगच्चदूमियमणो सो । ते दठूण सुहोदयवसओ तेसिं गओ पासं ॥ ८९९८ ॥ भत्तिब्भरनिब्भरंगो पणमियपयकमलमिलियभालयलो । उवविट्ठो जंपइ पहु ! गिहिजोग्गं कहह मह धम्मं ॥ ८९९९ ॥ आह पहू आयन्नसु नारय-तेरिच्छ-नर-सुरविभेया । भवइ भवो चउभेओ दुहमेव य चउसु वि गईसु ॥ ९००० ॥ पाणिवहप्पमुहमहापावा निवडंति पाणिणोणेगे । नरएसु तेसु वि सहति वेयणं विरसरसा रसिरा ॥ ९००१ ॥ तिरियनरभवंतरिया पुणरुत्तणुभूयसव्वनरयदुहा ।। बहुसो वि तिरिच्छत्ते सहति समुवज्जिऊण दुहं ॥ ९००२ ॥ सासयविरोहदुहवाहदोहमंसासिमारणाईणि । असुहाई समणुहविऊण के वि अज्जिति मणुयत्तं ॥ ९००३ ॥ तम्मि वि धम्मविरहिया दीणा दारिद्ददुहभरक्कंता । विहलीहूय मणोरहमाला परिभवपयं हुंति ॥ ९००४ ॥ देवा वि परप्पेसत्तदुस्सहईसा-विसायवियलंगा । अत्ताणमकयसुकयं निंदंता दुहमणुहवंति ॥ ९००५ ॥ एवं पावंति सुहं न गइचउक्के वि धम्मपरिहीणा । धणवज्जिय व्व विवणीए नियमणोभिमयवरवत्थु ॥ २००६ ॥ ता धम्मो च्चिय कज्जो दुव्विहो साहु-गिहिविभेएहिं । पढमे दसेव भेया नेया बीयम्मि बारसओ || ९००७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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