Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिअणंतजिणचरियं
ईय जंपिय कुमई विप्पयारणुप्पन्नरायरसपमुहं । “कहियं रन्नो भन्नइ पमाणभूमीए नो अलीयं ॥ ८५२९ ॥ जेण सरीरेण कयं सहउ तयं देव ! निग्गहदुहाई ।। "देए पच्छा वि रिणे सइ दव्वे दिज्जइ न किं तं ॥ ८५३० ॥ आह निवो मा बीहसु जमेक्कवारं इमाण महिलाणं ।। अभओ मए विइन्नो फाडण-संधाणकोउयओ ॥ ८५३१ ॥ नामाणुसारिणि च्चिय कुमईए मई महाअणत्थयरी ।। “अहवा परिपज्जलिरो दहणो दहणो च्चिय जहत्थों ॥ ८५३२ ॥ पेच्छ पवंचमईए भज्जं पक्खिविय कड्ढिया असई । नो विन्नायं केणइ बुद्धीए अगोयरो नत्थिं ॥ ८५३३ ॥ सेट्ठिसुय ! नो कयाइ वि विस्ससियव्वं तए कुमहिलाण । जं संपइ विस्ससियस्स आगओ आसि तुह मच्चू ॥ ८५३४ ॥ विन्नवइ कित्तिसारो देवपसाएण जीवियव्वस्स । पत्तस्स चरियचरणं भवहरणं सहलयं काहं ॥ ८५३५ ॥ जइ नो देवो दितो पाणे मह नूण ता अहं इन्हि । उभयभवसंभवाण वि चुक्कंतो चेव सोक्खाणं ॥ ८५३६ ॥ रायाह वच्छ ! कस्सइ कयाइ भववासमहिवसंतस्स । दुक्कम्मेण अवाया हवंति ता मा समुच्चियसु ॥ ८५३७ ॥ मा कुणसु वयकिलेसं, धम्मो संतस्स होइ गिहिणो वि । "को नाम कुणइ कळं सईकज्जे सोक्खमज्झम्मि ॥ ८५३८ ॥ सो भणइ सामि ! एवं विडंबणा होइ जाण कज्जम्मि । मह होउ तेहिं विसएहिं वयमहं संपइ गहिस्सं ॥ ८५३९ ॥ जंपइ सेट्ठी बुज्झवह देव ! एसेव जं सुओ मज्झ । करह पडियं व भंडयमिमं विणा फुडइ हिययं मे ॥ ८५४० ॥ पुत्तेणुत्तं जइ अज्ज पहु ! तए हं विणासिओ हुँतो । हुंता केत्तियमित्ता ता पुत्ता मज्झ जणयस्स ॥ ८५४१ ॥
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