Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 725
________________ ६९६ सिरिअणंतजिणचरियं देइ न कणं पि कस्सइ एसो बहु धन्नसंगहपरो वि । इय भावियकुविएण व दड्ढा जलणेण कोट्ठारा ॥ ८९४३ ॥ न वि चाओ न य भोगो किमस्स ता निरुवयारिदविणेण । इय चिंतिऊण व तयं नीयं खत्तेण चोरेहिं ॥ ८९४४ ॥ इंगाल च्चिय जाया धणे निहाणीकए कुकम्मवसा । अवरदविणज्जणासा कुओ करत्थे विणस्संतो ॥ ८९४५ ॥ सयमवि दिन्नं न लहइ जणाओ कत्तो कलंतरधणं से । . उयरट्ठिय तणयासा का अंगुलिलग्गसुयमरणे ? || ८९४६ ॥ मग्गियजणनीयाई न मग्गमाणो वि लहइ रित्थाई । नियवत्थु पि न लहई जत्थ कहिं तत्थ पर वत्थु ॥ ८९४७ ॥ ससुरेणा वि विइन्नं बहुवाराओ धणं तयं पि गयं । पत्ता वि सिरी झिज्जइ नूणमकल्लाणकलियाण ॥ ८९४८ ॥ किं बहुणा संजायं दव्वं सव्वं पि से कहासेसं । तो दटुं सीयंत कंतं कंता विहियविणया ॥ ८९४९ ।। उल्लवइ दईयतइया न कयं कस्सा वि जंपियं तुमए । जइ वा दइवाभिहयाण होइ एवंविहकुबुद्धी ॥ ८९५० ॥ इय जंपिऊण तीए ववहारकए समप्पियं पइणो । निययाभरणं अहवा पइभत्ता होइ कुलकंता" ॥ ८९५१ ॥ तं पि हु कइहिं वि दिवसेहिं पेसियं तेण पुव्वधणमग्गे । अहवा जं जं खिप्पइ हुयासणो दहइ तं तं पि ॥ ८९५२ ॥ पच्छा रत्थाई वि विक्किऊण भुत्ताई तेण सव्वाइं । आयविहूणे वित्ते वइज्जमाणे कुओ रिद्धी ? ॥ ८९५३ ॥ घरहट्ठोवरि गहिऊण कंचणे भक्खियम्मि तेसि पि । चुक्को अहव अभग्गाण जाइ पिउदिन्नमवि रज्जं ॥ ८९५४ ॥ जेसिं देयं दव्वं न तेसिं पासाओ लहइ अवरत्थ । गंतुं तो तत्थेवय निवसइ अच्चंतदोगच्चो ॥ ८९५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778