Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिअणंतजिणचरियं
देइ न कणं पि कस्सइ एसो बहु धन्नसंगहपरो वि । इय भावियकुविएण व दड्ढा जलणेण कोट्ठारा ॥ ८९४३ ॥ न वि चाओ न य भोगो किमस्स ता निरुवयारिदविणेण । इय चिंतिऊण व तयं नीयं खत्तेण चोरेहिं ॥ ८९४४ ॥ इंगाल च्चिय जाया धणे निहाणीकए कुकम्मवसा । अवरदविणज्जणासा कुओ करत्थे विणस्संतो ॥ ८९४५ ॥ सयमवि दिन्नं न लहइ जणाओ कत्तो कलंतरधणं से । . उयरट्ठिय तणयासा का अंगुलिलग्गसुयमरणे ? || ८९४६ ॥ मग्गियजणनीयाई न मग्गमाणो वि लहइ रित्थाई । नियवत्थु पि न लहई जत्थ कहिं तत्थ पर वत्थु ॥ ८९४७ ॥ ससुरेणा वि विइन्नं बहुवाराओ धणं तयं पि गयं । पत्ता वि सिरी झिज्जइ नूणमकल्लाणकलियाण ॥ ८९४८ ॥ किं बहुणा संजायं दव्वं सव्वं पि से कहासेसं । तो दटुं सीयंत कंतं कंता विहियविणया ॥ ८९४९ ।। उल्लवइ दईयतइया न कयं कस्सा वि जंपियं तुमए । जइ वा दइवाभिहयाण होइ एवंविहकुबुद्धी ॥ ८९५० ॥ इय जंपिऊण तीए ववहारकए समप्पियं पइणो । निययाभरणं अहवा पइभत्ता होइ कुलकंता" ॥ ८९५१ ॥ तं पि हु कइहिं वि दिवसेहिं पेसियं तेण पुव्वधणमग्गे । अहवा जं जं खिप्पइ हुयासणो दहइ तं तं पि ॥ ८९५२ ॥ पच्छा रत्थाई वि विक्किऊण भुत्ताई तेण सव्वाइं । आयविहूणे वित्ते वइज्जमाणे कुओ रिद्धी ? ॥ ८९५३ ॥ घरहट्ठोवरि गहिऊण कंचणे भक्खियम्मि तेसि पि । चुक्को अहव अभग्गाण जाइ पिउदिन्नमवि रज्जं ॥ ८९५४ ॥ जेसिं देयं दव्वं न तेसिं पासाओ लहइ अवरत्थ । गंतुं तो तत्थेवय निवसइ अच्चंतदोगच्चो ॥ ८९५५ ॥
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