Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 703
________________ ६७४ सिरिअणंतजिणचरियं रन्ना रिद्धीए पुरे सहट्टसोहे पवेसिओ कुमरो । नवपरणीयं पुत्तं मुत्तुं को गोरवट्ठाणं ॥ ८६५९ ॥ पणओ पिउणो पयसयदलम्मि सपिओ वि पत्तआसीसो । नमिउं जणणी चलिओ सुद्धते च्चिय ठिया बहुया ॥ ८६६० ॥ पिउपयसेवासत्तस्स तस्स कुमरस्स जंति दिवसाइं । तं अहिसिंचइ राया रज्जे रिद्धीए कईया वि ॥ ८६६१ ॥ गीयत्थगुरुसयासे पत्तवओ कयतवो पहयपावो । उप्पन्नविमलनाणो रायरिसी सिवपुरं पत्तो ॥ ८६६२ ॥ नवराया निरवज्जं रज्जं पालइ पयासए नीई । ताडइ चरडे मन्नइ महायणं अज्जइ जसं सो ॥ ८६६३ ॥ वंदइ गुरुणो पूयइ जिणेसरं संघमच्चए निच्चं । कारवइ विभूईए रहजत्ताओ जिणिंदाणं ॥ ८६६४ ॥ इय वच्चंते काले कयाइ दीवयपहाए उप्पन्नो । पुत्तो उत्तमलक्खणगणलंछियहत्थपायतले ॥ ८६६५ ॥ विरईय वद्धावणओ रयणपईवो त्ति कुणइ पुत्तस्स । नामं सम्माणेउं सव्वजणं नरवई हिट्ठो || ८६६६ ॥ वरिसाइं पंच पालित्तु पाढिओ तयणु जोव्वणं पत्तो । वीवाहिओ य उम्मत्तजोव्वणाओ निवसुयाओ ॥ ८६६७ ।। समयंतरम्मि कम्मि वि राया रयणीए तुरीयपहरम्मि । जागरमाणो सद्धम्ममग्गमणुचिंतिउं लग्गो ॥ ८६६८ ॥ दीवयमित्ताए वि मे पूयाए असरिसा सिरी जाया । "सुहुमाओ वि वडबीयाओ जायए नहलिहो साही ॥ ८६६९ ॥ "थोवा वि धम्मकिरिया भावेण कया महाफला होइ । लहुया वि दीवयसिहा उज्जोयइ गरुयमवि गेहं ॥ ८६७० ॥ जे पुण कुव्वंति वयं ते सिद्धिवहूवरा धुवं हुंति । "अच्चब्भुयकल्लाणे अप्पायत्ते पमाओ को ? ॥ ८६७१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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