Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिअणंतजिणचरियं कईया वि नियप्पासायचंदसालागवक्खमल्लीणो । विविहविणोयक्खित्तो जा चिट्ठइ सह वयंसेहिं ॥ ८८९१ ।। ताव सहस त्ति एगो कीरो नियपक्खनीलकंतीए । हरियाली कलियं पिव नहं कुणंतो समणुपत्तो ॥ ८८९२ ॥ अच्छरियं जणयंतो जणस्स कुमरक्कमे नमेउं सो । मुहुरगिरं पयडक्खरमेवं विन्नविउमारद्धो ॥ ८८९३ ॥ आरामाहियवासो रायसुओ रत्तवयणविन्नासो । तुममिव कुमर ! अहं पि हु तेणाहं तं समल्लीणो ॥ ८८९४ ॥ ता आयन्नसु कज्जेणमागओ जेण विन्नवेमि तयं । निक्कज्जाओ पवित्तीओ हुंति जइ वा न सउणाण ॥ ८८९५ ॥ तं सोऊण पयंपइ कुमरो कीराहिराय ! उवविसिउं । रयणासणम्मि साहसु तो सो उवविसिय साहेइ ॥ ८८९६ ॥ अत्थिरयाहियतुरयं अत्थिरयाहियसुवन्नवरदाणं । अत्थिरया रहियजणं उदयाणंदाभिहं नयरं ॥ ८८९७ ॥ तम्मि नमिरनरेसरसिरिसेणा मणिप्पहासिसंगपओ । उदियप्पयावराया समत्थि वित्थरियजसपसरो ॥ ८८९८ ।। सच्छप्पयई कालुस्सहारिणी सारसोहसंजुत्ता । उदयावलि व्व उदयावली पिया अत्थि नरवइणो ॥ ८८९९ ॥ विलसंतविमलसंखा कयसयवत्तालिचक्कसंखोहा । उदयस्सिरि त्ति उदयस्सिरि व्व तीए समत्थि सुया ॥ ८९०० ॥ सरलसहावा नियनासिय व्व सिहणस्सिहि व्व सुपवित्ता । दूरं रत्तं अहरं व धरइ जा वयणविन्नासं ॥ ८९०१ ॥ निरूवमरूवं कमणीयजोव्वणं तं समग्गसोहग्गं ।
अवलोइउं जुवाणा वहंति दूरं मणुम्मायं ॥ ८९०२ ॥ दळूणतठें हरिणच्छिपेच्छियं तीए नीइनिउणा वि । मुणिणो वि अणप्पवसा हवंति किं निव्विवेयाओ ॥ ८९०३ ॥
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