Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
६७१
भुवनपईवनिवकहा काउं पसायमाइसह ताय ! ईय भणइ पिउकमे नमिउं । तो से सायरखयरिंदपत्थणं साहए राया ॥ ८६२० ॥ सा आह ताय ! लग्गइ अंगे सोहग्गसंगओ सो मे । पुव्वभवुब्भवभत्ता अग्गी वा इह भवे नन्नो ॥ ८६२१ ॥ नायसुया अणुबंधो सम्माणियनहयरं विसज्जेइ । सो वि गओ वेयड्ढे निक्कज्जं किं विएसेण ॥ ८६२२ ॥ चिंतइ नहयरनाहो हिययगया दूमए मयच्छी मं । विरहजरजलणजालाजलिरंगं तट्ठभल्लि व्व ॥ ८६२३ ॥ सा मं तमन्नइ च्चिय ठाउमसत्तो न तं विणाहमवि । ता हरणमेवजुत्तं मह निवतणयाए इन्हिं पि ॥ ८६२४ ॥ अहवा किं हरणेणं सइ कुमरे तम्मि मह न सा होही । ता तं पच्छन्नं चिय हणेमि ईय चिंतिउं झ त्ति ॥ ८६२५ ॥ एगो च्चिय निसिनिग्गंतुमुवगओ कुमरवासभवणंते । “मारणमईए अहवा इत्थीलुद्धाण किमकज्जं ? || ८६२६ ॥ तिसिरदुवालसभुयएक्कतणुलयारद्धपेच्छणयछउमा । तमिहाणीओ तेणं मंतेणुग्घाडियपओलिं ॥ ८६२७ ।। तो सहसा संजाओ सुहडो आयड्ढियासि दुद्धरिसो ।। साहिक्खेवं रइयम्मि रणभरे सो जिओ तुमए ॥ ८६२८ ॥ "जे ससत्थपडिकूला जे वा वीसत्थघाइणो कुडिला । नियमेण पडंति च्चिय ते पुरिसा पावपहरया ॥ ८६२९ ॥ ता कुमर ! सो अहं नियदयाए हणणारिहो वि जो तुमए । मुक्को त्ति मए कहिओ तुह पुरओ निययवुत्तंतो || ८६३० ॥ इय जह खयराओ सुयं तह कुमरेणावि जाइसरणेण । सव्वं चिय सच्चवियं सिविणयदिह्र व तव्वेलं ॥ ८६३१ ॥ भणियं च खयर ! तुमए जह कहिओ तह मए वि पुव्वभवो । दिट्ठो जाइस्सरणेण तयणु तयं खेयरो भणइ ॥ ८६३२ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778