Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिअणंतजिणचरियं
इय जायपंच कल्लाणमवि पहुं थुणियचत्तकल्लाणं । मन्नेमि चंदपहु ! नयभवसायरतिन्नमत्ताणं ॥ ८६०७ ॥ सेट्ठिस्स पक्खवाओ जिणिंदभत्तीए तेसु संजाओ । "अहवायरो गुरूणं सगुणे विगुणे पुण उवेहा" ।। ८६०८ ॥ पुणरुत्तं पणयजिणो अकिंचणो सेट्ठिणा सभज्जो वि । नेउं नियभवणे दिन्नबहुघओ पेसिओ सगिहो ॥ ८६०९ ॥ तम्मि वि भवम्मि जिणभत्तिभावओ अकिंचणो धणी जाओ । “अहव न तं कल्लाणं जिणपूयाए न जं होई ॥ ८६१० ॥ कइया वि आउअंते मज्झिमपरिणामओ मरिय जाओ । भुवणप्पईवनामो पुत्तो निवकुलपईवस्स ॥ ८६११ ॥ तेणेव य भावेणं तब्भज्जा मरिउमेत्थ उप्पन्ना । एसेव य तुह तणया जिणदीवयपूयपुन्नेण ॥ ८६१२ ॥ इह पत्ता मं पेच्छिय जाईसरणेण मुच्छिया एसा । निवपुच्छियं तए जं तं मुच्छाकारणं कहियं ॥ ८६१३ ॥ नमिय गुरुं भणइ सुयारिद्धी पहु ! तुह पसायओ एसा । मह सपियस्स वि जाया "किं वा न हवइ गुरुपसाया" ॥ ८६१४ ॥ सोऊण कुमरिचरियं जिणपूयाकयमई जणो सव्वो । रायाईओ गुरूणं नमिय नियट्ठाणमणुपत्तो || ८६१५ ॥ नयकेवलिक्कमो नहयरेसरो मणिविमाणविंदेण । नंदीसरम्मि पत्तो चलिओ अभिवंदिय जिणिंदे ॥ ८६१६ ॥ नवरं रायसुया दंसणाइअणुरायभरपरायत्तो । निवपासे संपत्तो पणयपरो पत्थए कन्नं ॥ ८६१७ ॥ रायाह नहयरेसर ! जुत्तमिणं किं तु पुच्छिमो कन्नं । "जावज्जीवियकज्जे काउं जुत्तो न उवरोहो” ॥ ८६१८ ॥ तो वाहरिया पत्ता निवंतियं रइयरम्मसिंगारा । बाला लीलालससरललोयणुल्लासलसिरमुही ॥ ८६१९ ॥
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