Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 686
________________ ६५७ भुवनपईवनिवकहा सियसोणसाममणिमयभूसणसयभूरियकिरणनियरेहिं ।। रयणाभरणेहिं पिव अलंकरंतो तुरंगं पि ॥ ८४३८ ॥ दठूण तुमं उम्मीलमाणनवनेहनिद्धनयणेहिं । आदिट्ठिपहं अवलोईओ बहुं तीए अवियण्हं ॥ ८४३९ ॥ सोहग्गरयणरोहणसंमोहणमयणबाणसमतुमए । दिट्ठिप्पहाइक्कंते वियंभिओ तीए विरहभरो ॥ ८४४० ॥ चत्तम्मि तुमं चित्ते तुहागिई तुज्झ नाममालवणे । सेविणे समागमो ते सा बाला तम्मई जाया ॥ ८४४१ ॥ वरहानलजालावलिजलिरसरीराए तीए पारद्धो । संसुवयंसीहिं सयं सययं सिसिरोवयारभरो || ८४४२ ॥ तडक्कारं हारे तणुतावेणं फुडंति मुत्तीओ । समिसिमिय सुसंति च्चिय नवकुवलयनालमालाओ || ८४४३ ॥ यणचंदणागुरूसच्छडाओ छंकारपुव्वगं तीसे । उत्तंगसंगमेणं लग्गंतीओ वि परिसुसंति ॥ ८४४४ ॥ गोसावस्सायस्संदिसाहिसेणि व्व मुयइ अंसूणि । मंजइ देहं जिंभाओ भयइ परिभमइ एमेव ॥ ८४४५ ॥ एवमवत्था सा तस्सहीहिं सह देसिया तओ तीए । तं साहियं समग्गं पि तो अहं एत्थ संपत्ता ॥ ८४४६ ॥ ता सुयह ! तुज्झ संगमआस च्चिय धरइ जीवियं तीए । अवहीरियाए तुमए मरणं चिय जेणिमं भणियं ॥ ८४४७ ॥ 'दूरयरदेसपरिसंठियस्स पियसंगम वहंतस्स । आसाबंधो च्चिय माणुसस्स परिरक्खए जीयं ॥ ८४४८ ॥ ता मह उवरोहेणं अहवा तज्जीविय व्व करुणाए । तं रमसु एक्कवारं दक्खिन्नदयाओ जं गरुए ॥ ८४४९ ॥ इय जंपंती दंतग्गधरियपंचंगुलं नमिय तस्स ।। तच्चरणमिलियभालं ठिया चिरं चिंतइ तओ सो ॥ ८४५० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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