Book Title: Ananthnath Jina Chariyam
Author(s): Nemichandrasuri, Jitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text ________________
६५९
८४६४ ॥
भुवनपईवनिवकहा सव्वप्पणा परायत्तमाणसो दंसिओ वयस्सेण । मह कहिऊणं तुह दंसणाणुरायाओ वियलत्तं ॥ ८४६४ ॥ तो तं संठावेउं तुह पासे हं समागया सुहयर ! । ता नररयणस्स तुम समीहियं कुणसु पसिऊणं ॥ ८४६५ ॥ तं सोउं सा असई नियणयणउम्मीलमाणउम्माया । जंपइ तुहोवरोहा अंबं ! अकज्जं पि हु करिस्सं ॥ ८४६६ ॥ तो तीए जंपियं पुव्वगोउरद्दारदेसदेवउले ।। आगंतुं मिलियव्वं निसाए पत्तस्स तस्स तए ॥ ८४६७ ॥ एवं निसुय तदुत्तीए तीए गंतूण कित्तिसारते । नीओ देवउले सो धणावली विय समणुपत्ता ॥ ८४६८ ॥ कुमईए जंपियं इह पविसिय मज्झम्मि रमह सच्छंदं । लोयागमणालोयणपरादुवारे हमच्छिस्सं ॥ ८४६९ ॥ तो मज्झ पविठेसुं तेसुक्कंठा विसंठुलंगेसु । तीए कहियं आरक्खियस्स गंतूण तं झ त्ति ॥ ८४७० ।। तो संनद्धधणुद्धरअसिखेडयकरभडेहिं चउपासं । परिवेढियदेवउलं स आह गोसे धरिस्समिमे ॥ ८४७१ ॥ तो निग्गमप्पवेसा न कस्सइ देया इह त्ति भणिय भडे । तूण मंति-निवईण कहियं तव्वइयरं सुत्तो ॥ ८४७२ ॥
ठूणं सेट्ठिसुओ देवउलं घडिय भडदढावेढं । उब्भूयभूरिभयवेविरंगजट्ठी विचिंतेइ ॥ ८४७३ ॥ पेच्छ जहा मज्झ महावसणमिणं दुस्सहं समणुपत्तं । जीवियमरणसरूवे संदेहे जेण पडिओ हं ॥ ८४७४ ॥ 'पुव्विल्लब्भवसमुन्भवपावपब्भारभावओवस्सं । सुनयाणं पि अवाया इंति न किं कयअनीईणं ॥ ८४७५ ॥ गोसे बंधेउं मं नेही आरक्खिओ विवणिवीहिं । जणयाइजणसमक्खं विडंबिही विविहवयणाहिं ॥ ८४७६ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778