________________
कृत
मृदु
मध्य
अहिंसा और अणुव्रत: सिद्धान्त और प्रयोग किन्तु जैन दर्शन में किसी भी परिस्थिति में अहिंसात्मक अवधारणा में कथमपि बदलाव स्वीकार नहीं किया गया है। यहां 108 प्रकार की अहिंसा का चित्रण मिलता है। मन, वचन और काय की तीन अहिंसा है। कृत, कारित, अनुमोदित से नौ प्रकार की अहिंसा हुई। क्रोध, मान, माया, लोभ के शमन से 9 x 4 = 36 प्रकार की अहिंसा दृष्टिगोचर होती है और मृदु, मध्य और तीव्र की दृष्टि से 36 x 3 = 108 प्रकार की अहिंसा का सूक्ष्म विश्लेषण जैन दर्शन में मिलता है। अहिंसा मात्र किसी के घात से बचना ही नहीं अपितु वाणी से न किसी को ठेस पहुंचाना और न ही मन में किसी प्रकार की दुर्भावना लाना है। एक सौ आठ प्रकार की अहिंसा का चार्ट इस प्रकार है :मन
वचन काय
कारित अनुमोदित क्रोध शमन मान शमन माया शमन- 36
लोभ शमन तीव्र
108 भारतीय दर्शनों में अहिंसा
अहिंसा की परिभाषाएं विभिन्न विचारकों द्वारा विभिन्न भाषाओं में की गई हैं, तब भी उनका तत्त्व एक है।
भगवान् महावीर ने कहा है:
'अहिंसा निउणं दिट्ठा सव्वभूएसु संजमो।' -प्राणी मात्र के प्रति जो संयम है, वही (पूर्ण) अहिंसा है। सुत्तनिपात धम्मिक सुत्त में महात्मा बुद्ध ने कहा हैपाणे न हाने न च घातयेय,न चानुमन्या हनतं परेसं । : सव्वेसु भूतेसु निधाय दंडं,ये थावरा ये च तसंति लोके ॥
-त्रस या स्थावर जीवों को न मारें, न मरावें और न मारने वाले का अनुमोदन करें। यजुर्वेद में कहा है:
'विश्वस्याहं मित्रस्य चक्षुषा पश्यामि'। -मैं समूचे संसार को मित्र की दृष्टि से देखू।
'तत्र अहिंसा सर्वदा सर्वभूतेष्वनभिद्रोहः'।
पातंजल योग के भाष्यकार ने बताया है कि सर्व प्रकार से, सर्व-काल में, सर्व प्राणियों के साथ अभिद्रोह न करना, उसका नाम अहिंसा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org