Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 252
________________ 233 अनुप्रेक्षाएं और चेजारा चाहता, तो दोनों मिलकर हड़प लेते। सेठ चाहता तो तीनों मिलकर बांट लेते। राजा तक बात पहुंचती ही नहीं। राजा चाहता, तो अकेला ही उस पर अधिकार कर लेता और किसी को कुछ नहीं देता। किन्तु मजदूरों ने कहा- "इस पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। इस पर गृह-शिल्पी का अधिकार हो सकता है।" गृह-शिल्पी ने कहा- "इस पर मेरा कोई अधिकार नहीं है। यह भूमि मकान-मालिक की है। इस पर उसी का अधिकार हो सकता है।" गृहस्वामी ने कहा- "भूमि से निकली हुई चीज पर राजा का ही अधिकार हो सकता है।" राजा ने भी उस पर अपना अधिकार स्वीकार नहीं किया। क्योंकि उसकी खुदाई बहुत गहरी नहीं थी और वह व्यक्तिगत भूमि थी। फलतः कोई भी उसे लेने को तैयार नहीं हुआ। प्रामाणिकता के आचरण का यह कितना बड़ा उदाहरण है ! "जिस पर मेरा अधिकार नहीं, उसे में नहीं ले सकता", यह कहकर स्वर्ण-मुद्राओं को ठुकराने वाले मजदूर, गृह-शिल्पी, साहूकार और राजा इसी भारत की मिट्टी में उत्पन्न हुए थे। 10. ब्रह्मचर्य-अणुव्रत की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राण-ध्वनि 2 मिनट 2. कायोत्सग 5 मिनट 3. शांति-केन्द्र पर ध्यान केन्द्रित कर ब्रह्मचर्य-अणुव्रत की अनुप्रेक्षा करें"मैं ब्रह्मचर्य तथा इन्द्रिय-संयम का क्रमिक विकास करूंगा।" इस शब्दावली का नौ बार उच्चारण करें। फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। 10 मिनट "पवित्रता मानव-जीवन का उच्च तत्त्व है। पवित्रता के विकास के लिए इन्द्रिय-संयम का विकास आवश्यक है। "इन्द्रिय संयम के अभाव में काम-वासना के अतिरेक से बचा नहीं जा सकता। "जिसकी संयम की शक्ति दृढ़ होती है, वह अपने चरित्र को अक्षुण्ण रख सकता है। "जिसकी संयम की शक्ति कमजोर होती है, उसका चरित्र गिर जाता है। "मैं संयम की शक्ति का विकास करूंगा। जिससे मैं काम-वासना के अतिरेक से बच सकता हूं।" 10 मिनट 5. महाप्राणध्वनि के साथ प्रयोग सम्पन्न करें। 2 मिनट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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