Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 257
________________ 238 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग स्वाध्याय और मनन (अनुप्रेक्षा के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है) अपरिग्रह और विसर्जन ममत्व या मूर्छा आन्तरिक परिग्रह है और वस्तु बाह्य परिग्रह । इन दोनों में निकट का संबंध है । मूर्छा को छोड़ने वाला बाह्य वस्तु को छोड़ता है और बाह्य वस्तु को छोड़ने वाला यदि मूर्छा को छोड़े तो उसे छोड़ने का अर्थ शून्य हो जाता है। समग्र आकार में मूर्छा और वस्तु दोनों का विसर्जन अपरिग्रह बनता है। परिग्रह-विसर्जन की प्राचीन परम्परा यह रही है कि जो पास में होता है, उससे अधिक संग्रह न करने का व्रत स्वीकार किया जाता। सम्प्रति इस परम्परा में कुछ परिवर्तन आया है। कुछ लोग, जिनके पास एक लाख रुपया है, एक करोड़ से अधिक परिग्रह न रखने का व्रत लेते हैं। यह पद्धति गम्भीरता से सोचने पर अर्थवान् नहीं लगती। परिग्रह-विसर्जन का फलित संयम होना चाहिए और उसकी भूमिका व्यावहारिक तथा स्पष्ट होनी चाहिए। कुछ लोग वार्षिक आय में से परिग्रह का विसर्जन करते हैं और कुछ लोग अपनी संगृहीत पूंजी में से भी विसर्जन कर देते हैं। विसर्जन के अनेक रूप हो सकते हैं। अर्थार्जन में अप्रामाणिक व्यवहार न करना, अशुद्ध साधनों को काम में न लेना भी इच्छा का विसर्जन है और जो इच्छा का विसर्जन है वह परिग्रह का ही विसर्जन है। कभी-कभी प्रश्न आता है कि हम लोग अर्जन भी करते रहें और विसर्जन भी करते चले जाएं, यह क्या है ? यदि विसर्जन ही करना है तो फिर अर्जन क्यों? इस प्रश्न का उत्तर अपने आप में ही ढूंढा जा सकता है। जिन्हें लगे कि हमारे लिए अर्जन आवश्यक नहीं है, उन्हें विसर्जन करने के लिए अर्जन की भूल कभी नहीं करनी चाहिए। जो लोग अर्जन को आवश्यक मानते हैं, उन्हें विसर्जन की बात को कभी नहीं भूलना चाहिए। जहां अर्जन के साथ विसर्जन की क्षमता उत्पन्न नहीं होती, वहां संग्रह और उसका मोह तीव्र हो जाता है, इसलिए जो अर्जन को न छोड़ सके, उसे विसर्जन का अभ्यास- अपनी आय में से कुछ-न-कुछ छोड़ने का संकल्प या संयम- अवश्य करना चाहिए जिससे उसकी मूर्छा सघन न हो। यह विसर्जन मूर्छा को बीच-बीच में भंग करते रहने की प्रक्रिया है, प्राप्त को त्यागते रहने का प्रयत्न है। ऐसा करने वाला किसी दूसरे के लिए नहीं करता, किन्तु अपनी मूर्छा को ही सघन या एकाधिकार प्राप्त न होने देने के लिए करता है। यह विसर्जन की परम्परा यदि व्यापक हो जाए, तो अहिंसा और अपरिग्रह के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति का सूत्रपात हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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