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अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
राम और रावण के युद्ध की घटना से आप परिचित हैं। कहां रावण की सेना और शस्त्र बल ? कहां वनवासी राम की बानरी सेना ? पर राम के पास असत् को अस्वीकारने का बल था, संकल्प का बल था। संकल्प-बल के सहारे लंकादहन हुआ, राक्षसों की धज्जियां उड़ा दी गई और वहां राम-राज्य स्थापित हो गया । अस्वीकार की यह शक्ति अपने विरोधी जनों के प्रति ही नहीं, पूज्यजनों के प्रति भी होनी चाहिए ।
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शहंशाह अकबर का नाम आपने सुना होगा। वे अपनी माता के बड़े भक्त थे । वे सब कुछ कर सकते थे, पर मां की बात नहीं टाल सकते थे। मां की सुविधा के लिए वे बड़े से बड़ा खतरा भी उठा लेते थे। एक बार उन्हें लाहौर और आगरे के बीच कोई नदी पार करनी पड़ी। उस समय उन्होंने अपनी मां की पालकी अपने कंधों पर उठाई थी। अपनी माता के वचनों को वे ब्रह्मवाक्य मानते थे। ऐसे मातृभक्त अकबर ने भी एक बार मां की बात माने से इन्कार कर दिया, यह उनकी अस्वीकार की शक्ति का द्योतक है।
बात यह हुई कि एक बार पुर्तगालियों ने मुगलों के एक जहाज को अपने अधिकार में ले लिया। उसमें उन्हें कुरान शरीफ की एक प्रति मिली। कुछ ईसाई पुर्तगालियों के मन में दुर्भावना जागी और उन्होंने उसको एक कुत्ते के गले में बांधकर शहर में घुमाया। यह खबर सुनते ही अकबर की मां आग-बबूला हो गई और प्रतिशोध - भावना से प्रेरित होकर बोली -- बाइबिल की प्रति को गधे के गले में बांधकर उस पर थूको और उसे शहर में घूमाओ ।
अकबर मां का आदेश सुनकर बोला-मां कांटे से कांटा निकालने की बात तो समझ में आती है, पर जुल्म का बदला जुल्म से लेना, इस बात से मैं सहमत नहीं हूं। कुछ मनचले लोगों ने कुरान शरीफ के प्रति दुर्भावनापूर्ण व्यवहार किया, इसमें बाईबिल का क्या अपराध है ? अपनी माता के अनुचित आदेश को अस्वीकार कर बादशाह ने एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया।
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आचार्य भिक्षु अपने दीक्षा - गुरु के अनन्य भक्त थे । उनके साथ उनका गहरा तादात्म्य जुड़ा हुआ था । पर जिस क्षण उनकी समझ में आ गया कि गुरु की हर बात ठीक नहीं है, वे उनसे बंधे नहीं रह सके । भयंकर मुसीबतों की संभावना स्पष्ट थी, फिर भी वे गुरु को छोड़कर चले गए। आचार्य भिक्षु के उस अस्वीकार का परिणाम था -- एक धर्म - क्रांति । मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि अस्वीकार की शक्ति जागृत होने के बाद हमारा मन कुछ भी नहीं कर सकता । न हम अपने मन को बुरा-भला कहें और न ही उससे हार स्वीकार करें। ऐसा होने से ही मानसिक अनुशासन विकसित हो सकता है।
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