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6. अनुचिन्तन करें
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अप्रामाणिकता एक असाधारण आवेग है । यह बहुत बड़ी बुराई है । जो भावना से अपरिपक्व होता है, वही अप्रामाणिक व्यवहार करता है।' "मैं अप्रामाणिकता की वृत्ति पर विजय पा सकता हूं। जिस क्षण अप्रामाणिक व्यवहार करने की बात मन में आएगी, उसी समय उसे बदल दूंगा । "
"मैं अपने आपको प्रामाणिकता की भावना से भावित करता रहूंगा। कोई भी परिस्थिति मुझे अप्रामाणिक नहीं बना सकती । "
"मेरे अपने विवेक को काम में लूंगा । आवेगों के आधार पर काम नहीं
करूंगा।"
" मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं निरन्तर प्रामाणिकता का विकास करूंगा । " 10 मिनट
2 मिनट
अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग
7. महाप्राण - ध्वनि के साथ प्रयोग संपन्न करें
स्वाध्याय और मनन
( अनुप्रेक्षा के बाद स्वाध्याय और मनन आवश्यक है ।) सत्य क्या है ?
दृष्टि और प्रतिपादन दो प्रकार के होते हैं- यथार्थ और अयथार्थ । जो तथ्य जिस रूप में है उसे उसी रूप में देखना और प्रतिपादित करना यथार्थ है। तथ्य के विपरीत दर्शन और प्रतिपादन अयथार्थ हो जाता है । सत्य का अर्थ है- यथार्थ का दर्शन और प्रतिपादन ।
यथार्थ का दर्शन-यह दृष्टिकोण का सत्य है या सत्य का दृष्टिकोण है । यथार्थ का प्रतिपादन वाणी का सत्य है । सत्य का महाव्रत चरित्र का पक्ष है, व्यवहार का पक्ष है । सत्य का महाव्रती दूसरे को वही बात कहता है, जो यथार्थ होती है और यथार्थ भी अहिंसा धर्म के अनुकूल होती है
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वह
सत्य का ऋजुता के साथ गहरा संबंध है । जो व्यक्ति ऋजु नहीं होता, 1 सत्य का प्रतिपालन नहीं कर सकता। इस संदर्भ में सत्य का संबंध केवल वाणी से ही नहीं होता किन्तु अपना अभिप्राय जताने की हर चेष्टा से हो जाता है । इस आधार पर सत्य की परिभाषा यह हो जाती है
सत्य
काया की ऋजुता
वाणी की ऋजुता
भाव की ऋजुता
संवादी - प्रवृत्ति (कथनी-करनी की समानता )
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असत्य
काया की वक्रता
वाणी की वक्रता
भाव की वक्रता
विसंवादी प्रवृत्ति ( कथनी-करनी का विरोध )
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