Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 242
________________ अनुप्रेक्षाएं कहां है दिल और दिमाग ? सबसे ज्यादा जटिल है यह लोभ की वृत्ति । सारी समस्याएं इससे पैदा हुई हैं। कैसे बदला जाए इसे ? इसी वृत्ति के कारण आदमी मंद और अज्ञानी बन रहा है। जो आदमी लोभी है, प्रसाधन चाहता है, आराम चाहता है, वह पढ़ा हुआ व्यक्ति भी मंद है। सर्दी के दिनों में दक्षिण दिशा में प्रस्थित सूरज भी मंद बन जाता है । कवि ने बहुत सुन्दर कल्पना प्रस्तुत की है दक्षिणाशा प्रवृत्तस्य, प्रसारितकरस्य च 1 तेज:तेजस्विनस्तस्य, हीयते ऽन्यस्य का कथा ॥ जो लाभ की आशा में चला गया, लोभ की दिशा में चला गया, धन की दिशा में चला गया, वह मंद बन गया। लोभ की दिशा में प्रस्थित व्यक्ति अज्ञानी बन जाता है, उसका सोचने का दृष्टिकोण बदल जाता है, दिल और दिमाग बदल जाता है। 2823 1 अमेरिका में आज भी एक बड़ी विचित्र घटना घट रही है। एक व्यक्ति हुआ था, बैजामिन फ्रेंकलिन । वह प्रेस चलाता था। उसके पास बीस डॉलर कम पड़ रहे थे उसने मित्र से सहायता मांगी। मित्र ने उसे बीस डॉलर दे दिए। उसका काम चल पड़ा। उसने मित्र के बीस डॉलर वापस देने चाहे । मित्र ने कहा- मैंने तो वापस लेने के लिए नहीं दिए थे । यदि तुम देना चाहते हो तो ऐसा करो, इन्हें अपने पास रखो, कोई जरूरतमंद आए तो उसे दे देना और उसे यह कह देना जब तक जरूरत हो तब तक वह इन्हें काम में। उसके बाद वे बीस डालर किसी तीसरे जरूरतमंद को ही दे दे। '' कल्पना - सूत्र कल्पना करें - दो. जीव हैं। एक व्यक्ति स्वयं है और एक दूसरा आदमी है। व्यक्ति पहले अपने आप को देखे । वह सोचे- मुझे किसी ने गाली दी तो मुझ पर क्या प्रतिक्रिया हुई ? मेरा मन कैसा बना ? मेरे मन में क्या भावना आई ? गाली की अपने भीतर क्या प्रतिक्रिया हुई ? वह उसका निरीक्षण करे। उसी व्यक्ति ने सामने वाले व्यक्ति को गाली दी । वह देखे - इस व्यक्ति के भीतर क्या प्रतिक्रिया हो रही है ? जो अपने भीतर प्रतिक्रिया हुई क्या वैसी ही दूसरे के भीतर प्रतिक्रिया हुई ? या अन्य प्रकार की प्रतिक्रिया हुई ? व्यक्ति सामने वाले व्यक्ति की प्रतिक्रिया को पढ़े और उसके संदर्भ में पुनः अपने आपको देखे, देखता चला जाय । भगवान् महावीर ने आत्म- तुला के सिद्धान्त का व्यवहार के संदर्भ में प्रतिपादन किया । जैन श्रावक की आचार संहिता आत्म-तुला के सिद्धान्त का व्यावहारिक रूप है। श्रावक की आचार संहिता का एक नियम है- मैं अपने आश्रित प्राणी की आजीविका का विच्छेद नहीं करूंगा। चाहे वह नौकर है, कर्मचारी है या पशु है । जो आश्रित है, वह उसकी आजीविका का विच्छेद नहीं कर सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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