Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 219
________________ 200 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग पौधे बढ़ गए और दूसरी दिशा के पौधे मुरझा गए । जिनको आवेश में, क्रोध की स्थिति में पानी दिया गया, वे मुरझा गये और प्रेमपूर्ण भावना से सिंचन मिलने वाले पौधे बढ़ गए। हर प्राणी से काम भी लेना चाहते हैं और क्रूरता भी करते चले जाते हैं। यह प्रतिकूल आचरण है। दुनिया का नियम है कि प्रेमपूर्ण व्यवहार से दूसरे से अधिक काम लिया जा सकता है, जीवन में सफल हुआ जा सकता है, अधिक सहयोग लिया जा सकता है, परन्तु अभी तक मानवीय दृष्टिकोण जितना विकसित होना चाहिए उतना विकसित नहीं हुआ है। इसमें दोषी सभी हैं । हम किसी एक को दोषी नहीं बता सकते। एक मिल-मालिक अपने मजदूरों के प्रति क्रूरतापूर्ण व्यवहार करता है तो मजदूर भी दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करते हैं। एक बड़ा अफसर अपने अधीनस्थ छोटे अफसरों के प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है तो वे छोटे अफसर अपने अधीनस्थ व्यक्तियों के प्रति वैसा ही व्यवहार करते हैं। जिस किसी के पास थोडी भी सत्ता है, शक्ति है, वह क्रूरता का व्यवहार न करे, यह नहीं देखा जाता। सब दोषी हैं। कोई भी दोष-मुक्त नहीं है। सत्ता न मिले, कुर्सी न मिले, तब तक सब ठीक हैं, नम्र हैं। जब सत्ता हस्तगत हो जाती है, फिर न जाने क्यों सारा व्यवहार बदल जाता है, नम्रता समाप्त हो जाती है, क्रूरता का व्यवहार हो जाता है, बड़प्पन की भावना पनपती है और फिर वह सबको प्रतिद्विष्ट मानता है। एक हाकिम था। उसके पास चारण का केस आया। हाकिम ने निर्णय सुना दिया। चारण को लगा कि न्याय नहीं हुआ। वह कवि तो था ही। उसने तत्काल एक कविता कह सुनाया-- 'सुण हाकिम संग्राम! आंधो मत हो यार । ___ औरां के दो चाहिजे, थारे चाहिजे चार ॥' 'हाकिम संग्रामसिंह तुम सत्ता में अंधे मत बनो! सुनो और व्यक्तियों के लिए दो आंखें पर्याप्त हैं पर तम न्याय की कुर्सी पर बैठे हो, तुम्हारे चार आंखें चाहिएं। दो आंखें बाहर को देखने के लिए और दो भीतर को देखने के लिए।' जब सत्ता आती है तब आदमी अन्धा हो जाता है। वह न्याय के स्थान पर अन्याय अधिक करता है। सत्ता और शक्ति का दुरुपयोग न हो, धन और शक्ति का दुरुपयोग न हो मानना चाहिए कि मानवीय दृष्टिकोण का विकास हुआ है। तब समझना चाहिए कि करुणा की ज्योति, करुणा की दीपशिखा प्रज्वलित हुई है। यह होने पर ही अन्याय मिट सकता है। आदमी को आदमी समझकर न्यायपूर्ण व्यवहार हो सकता है। यह निश्चित है कि किसी के पास पैसा कम हो, किसी के पास पैसा अधिक हो, किसी के पास अधिकार अधिक हो और किसी के पास कम अधिकर हो, यह भेद बुद्धि और शक्ति के तारतम्य पर आधारित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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