Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 221
________________ 202 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग बात को भी नहीं जानता तब गूढ तत्त्व को क्या जानता होगा? जन-मानस में उसके आदर की प्रतिमा खंडित हो गई। साथ-साथ उसके चिंतन की प्रतिमा भी खंडित हो गई। उसने सोचा था-महावीर कहेंगे कि तिनका टूट जाएगा तो मैं इसे नहीं तोडगा और वे कहेंगे कि नहीं टूटेगा तो मैं इसे तोड़ दूंगा। दोनों ओर उनकी पराजय होगी। किन्तु जो महावीर को पराजित करने चला था, वह जनता की संसद में स्वयं पराजित हो गया। अच्छंदक अवसर की खोज में था। एक दिन उसने देखा, भगवान् अकेले खड़े हैं। वह भगवान् के निकट आकर बोला- 'भंते! आप सर्वत्र पूज्य हैं। आपका व्यक्तित्व विशाल है। मैं जानता हूं महान् व्यक्ति क्षुद्र व्यक्तियों को ढांकने के लिए अवतरित नहीं होते। मुझे आशा है कि भगवान् मेरी भावना का सम्मान करेंगे।' इधर अच्छंदक अपने गांव की ओर लौटा, उधर भगवान् वाचाला की ओर चल पड़े। उनकी करुणा ने उन्हें एक क्षण भी वहां रुकने की स्वीकृति नहीं दी। भगवान् महावीर करुणा के अजस्र स्रोत थे । 3. अभय की अनुप्रेक्षा प्रयोग-विधि 1. महाप्राण ध्वनि 2 मिनट 5 मिनट 3. अनुभव करें-- अपने चारों ओर गुलाबी रंग के परमाणु फैले हुए हैं। गुलाब के फूल जैसा गुलाबी रंग का श्वास लें। 4. आनन्द केन्द्र पर गुलाबी रंग का ध्यान करें 3 मिनट 5. दर्शन केन्द्र पर चित्त को केन्द्रित कर अनुप्रेक्षा करें-- + अभय का भाव पुष्ट हो रहा है। .. + भय का भाव क्षीण हो रहा है। + इस शब्दावली को नौ बार उच्चारण करें। फिर इसका नौ बार मानसिक जप करें। 5 मिनट 6. अनुचिन्तन करें-- + भय से विकसित शक्तियां कुण्ठित हो जाती हैं। नई शक्तियां विकसित नहीं हो पाती, इसलिए मुझे अभय होने का अभ्यास करना चाहिए। + जो डरता है, उसे सभी डराते हैं। + भय आदमी को कमजोर बनाता है। + · कमजोर आदमी को कोई सहयोग नहीं करता। 2. कायोत्सर्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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