Book Title: Ahimsa aur Anuvrat
Author(s): Sukhlalmuni, Anand Prakash Tripathi
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 231
________________ 212 अहिंसा और अणुव्रतः सिद्धान्त और प्रयोग आग में गिरकर पानी फालतू भी हो सकता है। श्वास की क्रिया एक ऐसा बर्तन है। अगर इसका उपयोग किया जाए तो आंच भी लगेगी और जो कुछ आएगा वह फालतू नहीं लगेगा, उसका भी उपयोग हो जाएगा। जो शक्ति क्रोध के द्वारा खर्च होती थी वह शक्ति बच जाएगी और काम की शक्ति बन जाएगी। जितने आवेग, आवेश और वासनाएं हैं, वे सारे-के-सारे प्राण की शक्ति को खर्च करते चले जाते हैं। आग भी उपयोगी है और पानी भी उपयोगी है। आग में पानी डालो, आग बुझ जाएगी और पानी फालतू चला जाएगा। अगर हम आग और पानी के बीच में समताल-श्वास का बर्तन रखना सीख जायें तो पानी भी खराब नहीं होगा, काम का बन जाएगा। आग भी नहीं बुझेगी और हम उसे बहुत से काम में ले पाएंगे। सहिष्णुता का प्रयोग, सहन करने का प्रयोग, श्वास के बिना सम्भव नहीं होता। मनोबल की शिक्षा- सहिष्णुता एक बहुत बड़ी शक्ति है- सहिष्णुता । सहिष्णुता का विकास तब होता है जब सहारे की बात नहीं सोची जाती। जो कष्ट सहते हैं, कठिनाइयां झेलते हैं, वे सहिष्णुता का विकास कर लेते हैं। यह सब जीवन-विज्ञान की शिक्षा के द्वारा संपन्न हो सकता है। यह विद्याशाखीय शिक्षा के द्वारा कभी नहीं हो सकता। विद्या की जितनी शाखाएं हैं, उन सबको पढ़ लो, किन्तु सहिष्णुता की शक्ति नहीं जाग पाएगी, समता का विकास नहीं हो पाएगा। विद्या की एक शाखा-'जीवन-विज्ञान' ही ऐसा माध्यम बन सकती है जो आदमी की आन्तरिक शक्तियों को जगाकर उसके व्यक्तित्व को सर्वांग सुन्दर बना सकती है। आज तक इस शाखा की उपेक्षा होती रही है, हो रही है। जब तक वह उपेक्षा अपेक्षा में नहीं बदलेगी, उसका विकास नहीं होगा, तब तक कष्ट-सहिष्णुता या समता का भाव नहीं आ पाएगा, मनोबल का विकास नहीं हो सकेगा। मनोबल जो विकसित होता है, टूट जाता है। परिस्थिति आती है और आदमी अधीर हो जाता है। उसमें सहने की ताकत नहीं रहती।। हम जिस दुनिया में जी रहे हैं, वह संयोग-वियोग की दुनिया है। न जाने प्रतिदिन कितनी करुण घटनायें घटित होती हैं। दुर्घटनायें होती हैं। अनेक व्यक्ति मर जाते हैं। धन चला जाता है। अनेक विकट परिस्थितियां पैदा होती हैं। आदमी में उन्हें झेलने की शक्ति नहीं रहती। इस स्थिति में क्या संभव है कि हमारी शिक्षा हमें कोई सहारा दे ? आज की शिक्षा के साथ यह शिक्षा अवश्य ही जोड़नी होगी, और वह वह शिक्षा है अपने आपको देखने की शिक्षा, मनोबल को विकसित करने की शिक्षा, सहिष्णुता को बढ़ाने की शिक्षा। सहिष्णुता का अभाव ___आज का मनुष्य इतना असहिष्णु है कि वह कुछ भी सहन नहीं कर सकता। आज के युग की यह भयंकर बीमारी है। वह किसी भी घटना को सहन नहीं कर पाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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